Tuesday, March 5, 2019

राजपुरुषों के लिए - 8

जब अपने बल अर्थात सेना को हर्ष और पुष्टियुक्त प्रसन्न भाव से जानें और शत्रु का बल अपने से विपरीत निर्बल हो जावे तब शत्रु की ओर युद्ध करने के लिए जावे।

जब सेना बल वाहन से क्षीण हो जाये तब शत्रुओं को धीरे धीरे प्रयत्न से शांत करता हुआ अपने स्थान में बैठा रहे।

जब राजा शत्रु को अत्यंत बलवान जाने तब द्विगुणा वा दो प्रकार की सेना करके अपना कार्य सिद्ध करे।

जब आप समझ लेवे कि अब शीघ्र शत्रुओं की चढ़ाई मुझ पर होगी तभी किसी धार्मिक बलवान राजा का शीघ्र आश्रय ले लेवे।

जो प्रजा और अपनी सेना और शत्रु के बल का निग्रह करे अर्थात रोके उस की सेवा सब यत्नों से गुरु के सदृश नित्य करे।

जिस का आश्रय लेवें उस पुरुष के कर्मों में दोष देखे तो वहां भी प्रकार युद्ध ही करे निःशंक होकर करे।

जो धार्मिक राजा हो उससे विरोध कभी न करे किन्तु उससे सदा मेल रखे और जो दुष्ट प्रबल हो उसी के जीतने के लिए ये पूर्वोक्त प्रयोग करना उचित है।

धर्म की परिभाषा : धर्म मानव की इन्द्रियों में सन्निहित रहता है इन्द्रियों से सही करने वाला धार्मिक और बुरा चलने वाला अधर्मी।  दूसरी परिभाषा के अनुसार किसी भी शुभ कर्म में कठिनता धर्म और सरलता अधर्म मानी जाती है।


इसका प्रथम खंड यहाँ पढ़ें - राजपुरुषों के लिए - ७

आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा