प्रधानमन्त्री, नेताओं, सैनिकों व अन्य सभी रक्षा विभाग के मंत्रियों, सुरक्षा कर्मियों, पुलिस, व अर्ध सैनिक बलों के लिए
सर्वप्रथम एक देश के नेता सुनें व इसी पर ही चले - (योग - अर्थात मिल कर रहें व चलें जब दुष्ट शत्रु से युद्ध की स्थिति हो)
मनुस्मृति (भगवान् वेद से निकाली गयी बातें)
(स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज के सत्यार्थ प्रकाश, छठें समुल्लास, राजधर्म विषय से )
जब राजादि राजपुरुषों को यह बात लक्ष्य में रखने योग्य है जो (आसन ) स्थिरता, (यान) शत्रु से लड़ने के लिए जाना (सन्धि ) उन से मेल कर लेना, (विग्रह) दुष्ट शत्रुओं से लड़ाई करना (द्वैती भाव) दो प्रकार की सेना करके स्व विजय कर लेना (संश्रय) और निर्बलता में दूसरे प्रबल राजा (देश) का आश्रय लेना ये छः प्रकार के कर्म यथायोग्य कार्य को विचार कर उसमें युक्त करना चाहिए। १।
राजा(प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री, सेना अध्यक्ष) जो संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैतीभाव और संश्रय दो-दो प्रकार के होते हैं उनको यथावत जाने। २।
(संधि) शत्रु से मेल अथवा उससे विपरीतता करे परन्तु वर्तमान में करने के काम बराबर करता जाय यह दो प्रकार का मेल कहाता है। ३।
(विग्रह) कार्य सिद्धि के लिए उचित व अनुचित समय में स्वयं किया व मित्र के अपराध करने वाले शत्रु के साथ विरोध दो प्रकार से करना चाहिए। ४।
(यान) अकस्मात् कोई कार्य प्राप्त होने में एकाकी वा मित्र के साथ मिल के शत्रु की और जाना यह दो प्रकार का गमन कहाता है। ५।
स्वयं किसी क्रम से क्षीण हो जाए अर्थात निर्बल हो जाय अथवा मित्र के रोकने से अपने स्थान में बैठ रहना यह दो प्रकार का आसन कहलाता है। ६।
कार्य सिद्धि के लिए सेनापति (सेनाध्यक्ष ) और सेना के दो विभाग करके विजय करना दो प्रकार का द्वैध है। ७।
एक किसी अर्थ की सिद्धि के लिए किसी बलवान राजा वा किसी महात्मा (महापुरुष) की शरण लेना जिससे शत्रु से पीड़ित न हो दो प्रकार का आश्रय लेना कहलाता है। ८।
जब यह जान लो कि इस समय युद्ध करने से थोड़ी पीड़ा प्राप्त होगी और पश्चात करने से अपनी वृद्धि और विजय अवश्य होगा तब शत्रु से मेल कर के उचित समय तक धीरज रखो। ९।
जब अपनी सब प्रजा वा सेना अत्यंत प्रसन्न उन्नतिशील और श्रेष्ठ जाने, वैसे अपने को भी समझे तभी शत्रु से विग्रह (युद्ध) कर लेवे। १०।
नोट - छः बातें और हैं इस टॉपिक परपढ़ें - राजपुरुषों के लिए - 7
आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा आर्य
सर्वप्रथम एक देश के नेता सुनें व इसी पर ही चले - (योग - अर्थात मिल कर रहें व चलें जब दुष्ट शत्रु से युद्ध की स्थिति हो)
मनुस्मृति (भगवान् वेद से निकाली गयी बातें)
(स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज के सत्यार्थ प्रकाश, छठें समुल्लास, राजधर्म विषय से )
जब राजादि राजपुरुषों को यह बात लक्ष्य में रखने योग्य है जो (आसन ) स्थिरता, (यान) शत्रु से लड़ने के लिए जाना (सन्धि ) उन से मेल कर लेना, (विग्रह) दुष्ट शत्रुओं से लड़ाई करना (द्वैती भाव) दो प्रकार की सेना करके स्व विजय कर लेना (संश्रय) और निर्बलता में दूसरे प्रबल राजा (देश) का आश्रय लेना ये छः प्रकार के कर्म यथायोग्य कार्य को विचार कर उसमें युक्त करना चाहिए। १।
राजा(प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री, सेना अध्यक्ष) जो संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैतीभाव और संश्रय दो-दो प्रकार के होते हैं उनको यथावत जाने। २।
(संधि) शत्रु से मेल अथवा उससे विपरीतता करे परन्तु वर्तमान में करने के काम बराबर करता जाय यह दो प्रकार का मेल कहाता है। ३।
(विग्रह) कार्य सिद्धि के लिए उचित व अनुचित समय में स्वयं किया व मित्र के अपराध करने वाले शत्रु के साथ विरोध दो प्रकार से करना चाहिए। ४।
(यान) अकस्मात् कोई कार्य प्राप्त होने में एकाकी वा मित्र के साथ मिल के शत्रु की और जाना यह दो प्रकार का गमन कहाता है। ५।
स्वयं किसी क्रम से क्षीण हो जाए अर्थात निर्बल हो जाय अथवा मित्र के रोकने से अपने स्थान में बैठ रहना यह दो प्रकार का आसन कहलाता है। ६।
कार्य सिद्धि के लिए सेनापति (सेनाध्यक्ष ) और सेना के दो विभाग करके विजय करना दो प्रकार का द्वैध है। ७।
एक किसी अर्थ की सिद्धि के लिए किसी बलवान राजा वा किसी महात्मा (महापुरुष) की शरण लेना जिससे शत्रु से पीड़ित न हो दो प्रकार का आश्रय लेना कहलाता है। ८।
जब यह जान लो कि इस समय युद्ध करने से थोड़ी पीड़ा प्राप्त होगी और पश्चात करने से अपनी वृद्धि और विजय अवश्य होगा तब शत्रु से मेल कर के उचित समय तक धीरज रखो। ९।
जब अपनी सब प्रजा वा सेना अत्यंत प्रसन्न उन्नतिशील और श्रेष्ठ जाने, वैसे अपने को भी समझे तभी शत्रु से विग्रह (युद्ध) कर लेवे। १०।
नोट - छः बातें और हैं इस टॉपिक परपढ़ें - राजपुरुषों के लिए - 7
आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा आर्य
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