जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जो नर तन देवन को दुर्लभ सो पाया फिर रोना क्या अब।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
हीरा हाथ अमोल सहाय। काँच भाव से खोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जब वैराग्य ज्ञान घिर आया तब जाने और सोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे।जाग गए अब सोना क्या रे।
गाये सुजन सुवन में घिर के। भार सभी का ढोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे।जाग गए अब सोना क्या रे।
ईशवर से कर नेह बावरे। इन्द्रिय के वश होना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
ॐ नाम का सुमिरन कर ले। अंत समय में होना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
जाग गए अब सोना क्या रे। जाग गए अब सोना क्या रे।
(महर्षि दयानन्द गुरुकुल, चोटीपुरा की ब्रह्मचारिणियों द्वारा गए भजनों से साभार )
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
No comments:
Post a Comment