अथ ॐ महिमा
ॐ नाम अनमोल है अमृत का भण्डार धार हृदय में नाम यह होगा बेड़ा पार।
ॐ नाम अक्षर अविनाशी घट घट व्यापक आनन्द नाशी सर्व दुःखों का औषध नाम। ॐ नाम जप सुबहो शाम। ॐ नाम आनंद प्रदाता बन्धु सखा भ्राता पितु माता। सच्चा मित्र है केवल नाम ॐ नाम मुक्ति का धाम।
ॐ नाम सबसे बड़ा इससे बड़ा न कोई जो इसका सुमिरन करे शुद्ध आत्मा होई।
ॐ नाम हृदय में धार इसकी महिमा अपरम्पार। रिद्धि सिद्धि का दाता ॐ सिद्ध विनाशक त्राता ॐ।
इसमें त्राटक खूब लगाओ मनवांछित फल आनंद पाओ। अंतर्ज्ञान की ज्योति जगाओ पाप ताप संताप मिटाओ।
ॐ नाम अमृत भरा सर्व सुखों की खान सबसे उत्तम नाम यह करते वेद बखान।
वेदों ने है ॐ बखाना शास्त्रों ने इसको है माना। दर्शन शास्त्र करें व्याख्यान ॐ नाम अमृत का खान।
ॐ की महिमा गाती गीता भक्तों को जो करे पुनीता। ब्राह्मण ग्रंथों का यह सार ॐ नाम की महिमा अपार।
ॐ नाम में है भरा सब नामों का सार ॐ नाम सृष्टि में हुआ प्रथम विस्तार।
ब्रह्मा विष्णु और महेश गुणवाचक हैं नाम गणेश। शम्भू शिव शंकर भगवान नाम सभी ईश्वर के जान।
क्रिया शक्ति व विश्व महान अ अक्षर के हैं व्याख्यान। उ अक्षर की महिमा अनंत वायु विरत जगती जड़ पंथ।
म की महिमा कौन बखाने ईश्वर आदित्य प्राज्ञ ही जाने।
ॐ नाम अक्षर बना अ उ म का योग। इसके शुभ संयोग से नष्ट भ्रष्ट हों रोग।
महिमा ऋषि मुनियों ने पायी सिद्ध जनों ने मुक्ति पायी। अन्तर्मुख होकर जब ध्याया ॐ नाम रस अमृत पाया।
अर्थ विचार करे जो जाप उसके नाशे तीनों ताप। ॐ नाम में मन जो लगावे चार पदारथ सो जन पावे।
ॐ नाम सुमिरो सदा त्रिकुटी में कर ध्यान ॐ नाम के ध्यान से सिद्ध समाधि ज्ञान।
ध्यान ज्ञान का साधक ॐ कष्टों का बाधक है ॐ। दुरितों का है भक्षक ॐ सिद्ध विनाशक रक्षक ॐ।
ॐ नाम की महिमा अभारी ॐ नाम है अति सुखकारी अनुभव सिद्ध ॐ का नाम जिसमें मन पावे विश्राम।
ॐ नाम के धनुष से कर आत्म संधान ब्रह्म लोक को बेधकर हो जा अंतर्ध्यान।
अंतर ज्योति ज्योत जगे जब मन में जब मन में। जगमग ज्योति जगे जीवन में जीवन में।
ज्योतिर्मय है ॐ प्रकाश करता पाप ताप का नाश। इसमें योगी ध्यान रमाते और इससे है परम मति पाते।
अमृत ज्योत बहे जब भीतर चंचल चित्त हो वश में ही कर। शोधन वोधन सब हो पावे ॐ नाम जब सहज समावे।
ॐ नाम के जाप का कर प्रतिदिन अभ्यास। भक्ति भाव शुभ भावना रख करके विश्वास।
एक तत्व में ध्यान रमाना निश्चय ईश कृपा है पाना। ईश कृपा है अति अनूप मुद मंगलमय आनंद रूप।
जो मन ईश कृपा को पावे सब जग उसको शीश झुकावे। बाल न बांका हो उस जन का जो स्वामी हो अपने मन का।
ॐ नाम बल तेज को अपने मन में धार। गायत्री का जाप कर जो वेदों का सार।
वेद सार गायत्री है ॐ उसीका सार ॐ नाम के जाप से मिले मोक्ष का द्वार।
ॐ नाम गायत्री का सार इस के जप से बेड़ा पार। ॐ नाम की शोभा न्यारी भक्त जनों को लगती प्यारी।
जप से दूर न हरगिज़ रहना। अपना सुख दुःख उससे कहना।
ॐ नाम से सींच कर अपना आप सुधार। आप सुधर कर और का होगा कुछ उपकार।
पर उपकार हृदय में लाना ॐ नाम जप न बिसराना। सेवा संयम की हो टेक ॐ नाम अंतर में एक।
एक इष्ट की पूजा सुखकर एक देव हो ॐ कृतोस्मर। एक देव केवल भगवान् ॐ नाम जिसका आस्थान।
वेद शास्त्र मिलकर कहें अक्षर ॐ अनूप जिसकी छाया में रहें राजा रंक और भूप।
ॐ कृपा जब ही हो जावे छलना रस्ता झर झर जावे। भव भय बंध करें सब दूर आनंद से कर दे भरपूर।
परमानंद का बोध करावे सुख शान्ति हृदय में लावे। सात्विक भाव का उदय विकास यश और तप का होवे नाश।
ॐ नाम अमृत भरा अतिशय मंगल मूल। ॐ नाम के जाप से मिटे हृदय के शूल।
ॐ नाम भक्तों का प्यारा, संत जनों को तारन हारा। प्रेम प्रताप बढ़ावे ॐ जगमग ज्योति जगावे ॐ।
ॐ नाम से ज्ञान समाने, ॐ नाम मन चित्त को शोधे। घंटे बजे बजे घड़ियाल ॐ नाम धुन हो तत्काल।
बिन बाजा झंकार हो बिन चंदा उजियार। ॐ नाम के स्रोत की बरसे अमृत धार।
आनंद वर्षा तब हो पावे ॐ नाम से चित्त लगावे। रुखा सूखा हो सब दूर ॐ नाम रस से भरपूर।
तृषा बुझे चिंता नहीं आवे जिनसे जब चित्त में छा जावे। तमस मिटे आशा व समता ॐ नाम में मन जब रमता।
ॐ नाम के ध्यान से मन नम हो तत्काल। शुद्ध चेतना ज्ञान से कटे कष्ट विकराल।
ॐ द्वारे काजरकारे घट घट जापे खारे खारे जब हो वर्शन दर्शन रुखा अमृत बरसे मधुर सोम का।
पावन हीरा मस्त हो पावे जीवन हीरा मस्त हो जावे। दर्शक भी पावे आनंद ॐ नाम है करुणापन्न।
ॐ नाम में सुरति दिखाना कभी भी उसको न बिसराना।
ईश कृपा बरसे जहाँ होवे परमानंद। परमानंद के योग से मिटे सकल दुःख द्वन्द।
परमानंद पावे जब प्राणी अन्तर्मुख हो जावे वाणी। क्रिया कलाप सकल हो बंद ॐ नाम गूंजे आनंद।
रसना ॐ नाम रस पीवे पी पी कर पापों को धोवे। सुख शांति आनंद का स्रोत ॐ नाम की निर्मल ज्योत।
ॐ नाम की ज्योति से मिटे सकल अज्ञान। ज्ञान प्रकाशे चित्त में विकसे निर्मल ज्ञान।
ज्ञान बिना जीवन निस्सार ज्ञान बिना ना कटे अतिहार ज्ञान बिना नीरस सब ग्रन्थ ज्ञान बिना सूझे नहीं पंथ।
ज्ञान बिना बंधन नहीं टूटे ज्ञान बिना साधन सब झूंटे। ॐ नाम से ज्ञान प्रकाशे ॐ नाम से संकट नाशे।
ॐ नाम प्रगटे जहां सुख सिद्धि का सार। ॐ नाम के जाप के सुधरें बिगड़े काज।
ॐ नाम महिमा अति भारी जो है अतिशय मंगलकारी। ॐ नाम की पूजा अर्चा ॐ नाम की सुन्दर चर्चा।
ॐ नाम जो रसना गावे तीनों ताप को दूर भगावे। सबसे दूर हो ३२ पाप जगमग जगमग ज्योति विकास।
ॐ नाम आदित्य है सबसे है अति दूर। जो उसको उर धार ले जीवन हो भरपूर।
चंचल चित्त जब मन भटकावे चिंता चिता नज़र सब आवे चिंतन ॐ नाम का करना।
चित्त चंचल से कभी न डरना। नाम अभ्यास से वश में करना वैरागी बन धीरज धरना।
दीर्घ प्रणव अभ्यास से चंचल चित्त रुक जाए। अन्तर्मुख हो ध्यान में प्रभु शरण चित्त लाये।
देवों की एक अनुपम नगरी अष्ट चक्र नव द्वारों जकड़ी उसमें एक हिरण्मय कोष सरहित ज्योति से आहोश।
ॐ नाम उसमें समावे चेतन भाव तभी जग जावे। जड़ता मिटे अविद्या नाशे जीवन ज्योति हृदय प्रकाशे।
ॐ नाम के नाद उठे मृदुल झंकार जो इसको उर धार ले उसका बेडा पार।
श्रवण मनन करके निदिध्यासन निदिध्यासन से निश्चल आसन। आसन सिद्धि जब हो जावे रिद्धि सिद्धि सब भागी आवे।
चंचल मन पावे विश्राम जब निकले मुख से प्रभु नाम। जो इस नाम में चित्त लगावे जीवन मुक्त हो मुक्ति पावे।
मुक्ति मिले उस भक्त को जिसका शुद्ध आचार सेवा संयम सरलता सत्संग परउपकार।
परउपकार को जो अपनावे जीवन मुक्ति सो जन पावे। पर पीड़ा जो सहे निरंतर उसका शुद्ध और निर्मल अंतर।
निर्मल मन उद्धार को चाहवे निर्मल मन वांछित फल पावे। निर्मल मन से कटे प्रभात उस जन का हो बेडा पार।
निर्मल मन में प्रगटे ज्योति उत्तम ज्ञान निर्मल मन में उपजे सकल ज्ञान विज्ञान।
ॐ नाम से निर्मल ज्ञान। ॐ नाम सबसे प्रधान। ॐ नाम निज नाम प्रभु का।
ॐ नाम है प्रेम प्रभु का। ॐ नाम उपमा नहीं पावे। ॐ नाम जो भी जन गावे।
ॐ नाम जपना नित आप। ॐ नाम हरे तीनों ताप। ॐ नाम हरे तीनों ताप।
म की महिमा कौन बखाने ईश्वर आदित्य प्राज्ञ ही जाने।
ॐ नाम अक्षर बना अ उ म का योग। इसके शुभ संयोग से नष्ट भ्रष्ट हों रोग।
महिमा ऋषि मुनियों ने पायी सिद्ध जनों ने मुक्ति पायी। अन्तर्मुख होकर जब ध्याया ॐ नाम रस अमृत पाया।
अर्थ विचार करे जो जाप उसके नाशे तीनों ताप। ॐ नाम में मन जो लगावे चार पदारथ सो जन पावे।
ॐ नाम सुमिरो सदा त्रिकुटी में कर ध्यान ॐ नाम के ध्यान से सिद्ध समाधि ज्ञान।
ध्यान ज्ञान का साधक ॐ कष्टों का बाधक है ॐ। दुरितों का है भक्षक ॐ सिद्ध विनाशक रक्षक ॐ।
ॐ नाम की महिमा अभारी ॐ नाम है अति सुखकारी अनुभव सिद्ध ॐ का नाम जिसमें मन पावे विश्राम।
ॐ नाम के धनुष से कर आत्म संधान ब्रह्म लोक को बेधकर हो जा अंतर्ध्यान।
अंतर ज्योति ज्योत जगे जब मन में जब मन में। जगमग ज्योति जगे जीवन में जीवन में।
ज्योतिर्मय है ॐ प्रकाश करता पाप ताप का नाश। इसमें योगी ध्यान रमाते और इससे है परम मति पाते।
अमृत ज्योत बहे जब भीतर चंचल चित्त हो वश में ही कर। शोधन वोधन सब हो पावे ॐ नाम जब सहज समावे।
ॐ नाम के जाप का कर प्रतिदिन अभ्यास। भक्ति भाव शुभ भावना रख करके विश्वास।
एक तत्व में ध्यान रमाना निश्चय ईश कृपा है पाना। ईश कृपा है अति अनूप मुद मंगलमय आनंद रूप।
जो मन ईश कृपा को पावे सब जग उसको शीश झुकावे। बाल न बांका हो उस जन का जो स्वामी हो अपने मन का।
ॐ नाम बल तेज को अपने मन में धार। गायत्री का जाप कर जो वेदों का सार।
वेद सार गायत्री है ॐ उसीका सार ॐ नाम के जाप से मिले मोक्ष का द्वार।
ॐ नाम गायत्री का सार इस के जप से बेड़ा पार। ॐ नाम की शोभा न्यारी भक्त जनों को लगती प्यारी।
जप से दूर न हरगिज़ रहना। अपना सुख दुःख उससे कहना।
ॐ नाम से सींच कर अपना आप सुधार। आप सुधर कर और का होगा कुछ उपकार।
पर उपकार हृदय में लाना ॐ नाम जप न बिसराना। सेवा संयम की हो टेक ॐ नाम अंतर में एक।
एक इष्ट की पूजा सुखकर एक देव हो ॐ कृतोस्मर। एक देव केवल भगवान् ॐ नाम जिसका आस्थान।
वेद शास्त्र मिलकर कहें अक्षर ॐ अनूप जिसकी छाया में रहें राजा रंक और भूप।
ॐ कृपा जब ही हो जावे छलना रस्ता झर झर जावे। भव भय बंध करें सब दूर आनंद से कर दे भरपूर।
परमानंद का बोध करावे सुख शान्ति हृदय में लावे। सात्विक भाव का उदय विकास यश और तप का होवे नाश।
ॐ नाम अमृत भरा अतिशय मंगल मूल। ॐ नाम के जाप से मिटे हृदय के शूल।
ॐ नाम भक्तों का प्यारा, संत जनों को तारन हारा। प्रेम प्रताप बढ़ावे ॐ जगमग ज्योति जगावे ॐ।
ॐ नाम से ज्ञान समाने, ॐ नाम मन चित्त को शोधे। घंटे बजे बजे घड़ियाल ॐ नाम धुन हो तत्काल।
बिन बाजा झंकार हो बिन चंदा उजियार। ॐ नाम के स्रोत की बरसे अमृत धार।
आनंद वर्षा तब हो पावे ॐ नाम से चित्त लगावे। रुखा सूखा हो सब दूर ॐ नाम रस से भरपूर।
तृषा बुझे चिंता नहीं आवे जिनसे जब चित्त में छा जावे। तमस मिटे आशा व समता ॐ नाम में मन जब रमता।
ॐ नाम के ध्यान से मन नम हो तत्काल। शुद्ध चेतना ज्ञान से कटे कष्ट विकराल।
ॐ द्वारे काजरकारे घट घट जापे खारे खारे जब हो वर्शन दर्शन रुखा अमृत बरसे मधुर सोम का।
पावन हीरा मस्त हो पावे जीवन हीरा मस्त हो जावे। दर्शक भी पावे आनंद ॐ नाम है करुणापन्न।
ॐ नाम में सुरति दिखाना कभी भी उसको न बिसराना।
ईश कृपा बरसे जहाँ होवे परमानंद। परमानंद के योग से मिटे सकल दुःख द्वन्द।
परमानंद पावे जब प्राणी अन्तर्मुख हो जावे वाणी। क्रिया कलाप सकल हो बंद ॐ नाम गूंजे आनंद।
रसना ॐ नाम रस पीवे पी पी कर पापों को धोवे। सुख शांति आनंद का स्रोत ॐ नाम की निर्मल ज्योत।
ॐ नाम की ज्योति से मिटे सकल अज्ञान। ज्ञान प्रकाशे चित्त में विकसे निर्मल ज्ञान।
ज्ञान बिना जीवन निस्सार ज्ञान बिना ना कटे अतिहार ज्ञान बिना नीरस सब ग्रन्थ ज्ञान बिना सूझे नहीं पंथ।
ज्ञान बिना बंधन नहीं टूटे ज्ञान बिना साधन सब झूंटे। ॐ नाम से ज्ञान प्रकाशे ॐ नाम से संकट नाशे।
ॐ नाम प्रगटे जहां सुख सिद्धि का सार। ॐ नाम के जाप के सुधरें बिगड़े काज।
ॐ नाम महिमा अति भारी जो है अतिशय मंगलकारी। ॐ नाम की पूजा अर्चा ॐ नाम की सुन्दर चर्चा।
ॐ नाम जो रसना गावे तीनों ताप को दूर भगावे। सबसे दूर हो ३२ पाप जगमग जगमग ज्योति विकास।
ॐ नाम आदित्य है सबसे है अति दूर। जो उसको उर धार ले जीवन हो भरपूर।
चंचल चित्त जब मन भटकावे चिंता चिता नज़र सब आवे चिंतन ॐ नाम का करना।
चित्त चंचल से कभी न डरना। नाम अभ्यास से वश में करना वैरागी बन धीरज धरना।
दीर्घ प्रणव अभ्यास से चंचल चित्त रुक जाए। अन्तर्मुख हो ध्यान में प्रभु शरण चित्त लाये।
देवों की एक अनुपम नगरी अष्ट चक्र नव द्वारों जकड़ी उसमें एक हिरण्मय कोष सरहित ज्योति से आहोश।
ॐ नाम उसमें समावे चेतन भाव तभी जग जावे। जड़ता मिटे अविद्या नाशे जीवन ज्योति हृदय प्रकाशे।
ॐ नाम के नाद उठे मृदुल झंकार जो इसको उर धार ले उसका बेडा पार।
श्रवण मनन करके निदिध्यासन निदिध्यासन से निश्चल आसन। आसन सिद्धि जब हो जावे रिद्धि सिद्धि सब भागी आवे।
चंचल मन पावे विश्राम जब निकले मुख से प्रभु नाम। जो इस नाम में चित्त लगावे जीवन मुक्त हो मुक्ति पावे।
मुक्ति मिले उस भक्त को जिसका शुद्ध आचार सेवा संयम सरलता सत्संग परउपकार।
परउपकार को जो अपनावे जीवन मुक्ति सो जन पावे। पर पीड़ा जो सहे निरंतर उसका शुद्ध और निर्मल अंतर।
निर्मल मन उद्धार को चाहवे निर्मल मन वांछित फल पावे। निर्मल मन से कटे प्रभात उस जन का हो बेडा पार।
निर्मल मन में प्रगटे ज्योति उत्तम ज्ञान निर्मल मन में उपजे सकल ज्ञान विज्ञान।
ॐ नाम से निर्मल ज्ञान। ॐ नाम सबसे प्रधान। ॐ नाम निज नाम प्रभु का।
ॐ नाम है प्रेम प्रभु का। ॐ नाम उपमा नहीं पावे। ॐ नाम जो भी जन गावे।
ॐ नाम जपना नित आप। ॐ नाम हरे तीनों ताप। ॐ नाम हरे तीनों ताप।
(श्रीमत दयानन्द विश्वविद्यालय गुरुकुल चोटीपुरा की ब्रह्मचारिणियों के गाये भजन से। )
प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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