जीवन को अपने ऐसे सजा जिससे उजाला पूर्ण हो।
मन को तू अपने ऐसे सजा जिससे मधुरता पूर्ण हो ।
तन को तू अपने ऐसे सजा जिससे भरा बल पूर्ण हों ।
बुद्धि को अपनी ऐसे सजा जो ज्ञान से भरपूर हो ।
इन्द्रियों को अपनी ऐसे सजा जिससे सदा दुःख दूर हो।
प्राणों को अपने ऐसे सजा मृत्यु भी जिससे दूर हो।
सत्यानंद योगाभ्यास से सजा जिससे सदा आनन्द हो।
सत्यानंद सत्य से सजा जिससे सदा आनन्द हो।
सत्यानंद ओ३म् से सजा जिससे सदा आनन्द हो।
आत्मा को अपनी ऐसे सजा जिससे तुम्हारा मोक्ष हो॥
और ये तभी हो सकता है-
श्वांस श्वांस पर ॐ भज वृथा श्वांस मत खोवे।
न जाने ये स्वांस भी आये या ना आवन होवे।
परमात्मा हर जगह मौजूद है पर नजर आता नहीं।
योग साधन के बिना कोई उसे पाता नहीं।
रात के चौथे प्रहरों में एक दौलत लुटती रहती है।
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है।
उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है।
प्रभु जागत है तू सोवत है।
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा