जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
योग, यज्ञ, उपासना प्रभु की करने लगा है क्योंकि देश।
फिर से धन, ऐश्वर्य और ज्ञान हम पर हुआ मेहरबां है।
धर्म, अर्थ और काम मोक्ष की आस हमें ऐ नादाँ है।
सब कुछ हम पर है, हम सब कुछ हैं।
छूटा अज्ञान, अन्धकार, अशुभ और क्लेश।
जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
बल अंतर का जाग चुका है बल शरीर में आया है।
आध्यात्मिकता व भौतिकता का मिलन हमें यूँ भाया है।
आज दूर यंत्रों से हों या न हों प्रेम घुमड़ कर छाया है।
कृपा प्रभु से आत्म विभोर हो ह्रदय हमारा गाता है।
जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
आओ सभी इस परम पिता के लिए गीत मिल गायें।
दूर शत्रुता करके फिर से प्रभु शरण हो जाएँ।
बन जाने दो इस देश को फिर से विश्व गुरु ऐ यारों।
हो जाये निष्कंटक जिससे राज्य धर्म वैदिक का।
शंख, चक्र अपनाओ फिर से पद्म, गदा धारो तुम।
ऐ ब्रह्मचारी विष्णु रूप अपने को पहचानो तुम।
जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
(स्वरचित)
इस कविता को अंग्रेजी में पढ़ें
चित्र : आधुनिक भीम, भारत (डॉक्टर विश्वपाल जयंत, कण्वाश्रम, कोटद्वार)
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
योग, यज्ञ, उपासना प्रभु की करने लगा है क्योंकि देश।
फिर से धन, ऐश्वर्य और ज्ञान हम पर हुआ मेहरबां है।
धर्म, अर्थ और काम मोक्ष की आस हमें ऐ नादाँ है।
सब कुछ हम पर है, हम सब कुछ हैं।
छूटा अज्ञान, अन्धकार, अशुभ और क्लेश।
जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
बल अंतर का जाग चुका है बल शरीर में आया है।
आध्यात्मिकता व भौतिकता का मिलन हमें यूँ भाया है।
आज दूर यंत्रों से हों या न हों प्रेम घुमड़ कर छाया है।
कृपा प्रभु से आत्म विभोर हो ह्रदय हमारा गाता है।
जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
आओ सभी इस परम पिता के लिए गीत मिल गायें।
दूर शत्रुता करके फिर से प्रभु शरण हो जाएँ।
बन जाने दो इस देश को फिर से विश्व गुरु ऐ यारों।
हो जाये निष्कंटक जिससे राज्य धर्म वैदिक का।
शंख, चक्र अपनाओ फिर से पद्म, गदा धारो तुम।
ऐ ब्रह्मचारी विष्णु रूप अपने को पहचानो तुम।
जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
(स्वरचित)
इस कविता को अंग्रेजी में पढ़ें
चित्र : आधुनिक भीम, भारत (डॉक्टर विश्वपाल जयंत, कण्वाश्रम, कोटद्वार)
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
Dhanyavad Bhai Rajneesh Jha Ji Thanks for complement.
ReplyDeleteEverything is god's grace.