आए न सावन
क्या करूँ भगवन आए न सावन।
बीते जाए दिन छिन आए न सावन।
जब तक मिल न जाए तू सावन का अस्तित्व नहीं है ।
जब तक प्राण गँवा न दूँ अपना कोई चरित्र नहीं है।
जब तक मौज बहारें हैं सावन है पर तू ए मित्र नहीं है ।
क्या करूँ भगवन आए न सावन।
कर्म नाम पर भोग हैं धर्म नाम पर मौजें हैं।
पर ए मित्र इस स्वर्ग धरा पर तेरा तो अस्तित्व नहीं है।
तेरा अस्तित्व तो तब ही होगा जब धर्म कठिनाई और कर्म निष्काम।
अपनाए जाएंगे और वेद ज्ञान के विज्ञान जनाए जाएंगे ।
क्या करूँ भगवन आए न सावन।
पर मानव मौजें लेता है और खूब मजे में मस्त है।
और पितरयाण पर जीता है और आस आप की रखता है।
मानव मानव नहीं गद्दार धर्म के नाम है अत्याचार ।
तभी आए न सावन भगवन ।
तभी बंद हैं पावन कविता ।
तभी बन्द है सावन।
क्या करूँ भगवन आए न सावन।
धर्म नाम पर दृढ़ श्रम हो।
और धर्म नाम पर पूजा भी।
धर्म नाम पर सत्य ज्ञान को पढ़ते रहें पढ़ाते भी।
तो सावन फिर से आएगा।
तो जीवन फिर से आएगा।
स्वर्ग यही आ जाएगा।
हाँ स्वर्ग यहीं मिल जाएगा।
यही मिलेगा तू भी भगवन
यही देवता आएंगे।
पर क्या करूँ भगवन आए न सावन।
बीते जाएं दिन छिन आए न शुभ दिन।
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
(स्वरचित)