Saturday, February 25, 2017

आए न सावन


आए न सावन


क्या करूँ भगवन आए न सावन।
बीते जाए दिन छिन आए न सावन।

जब तक  मिल न जाए तू सावन का अस्तित्व नहीं है ।
जब तक प्राण गँवा न दूँ अपना कोई चरित्र नहीं है।
जब तक मौज बहारें हैं सावन है पर तू ए मित्र नहीं है ।

क्या करूँ भगवन आए न सावन।

कर्म नाम पर भोग हैं धर्म नाम पर मौजें हैं।
पर ए मित्र इस स्वर्ग धरा पर तेरा तो अस्तित्व नहीं है।
तेरा अस्तित्व तो तब ही होगा जब धर्म कठिनाई और कर्म निष्काम।
अपनाए जाएंगे और वेद ज्ञान के विज्ञान जनाए जाएंगे ।

क्या करूँ भगवन आए न सावन।

पर मानव मौजें लेता है और खूब मजे में मस्त है।
और पितरयाण पर जीता है और आस आप की रखता है।
मानव मानव नहीं गद्दार धर्म के नाम है अत्याचार ।
तभी आए न सावन भगवन ।
तभी बंद हैं पावन कविता ।
तभी बन्द है सावन।

क्या करूँ भगवन आए न सावन।

धर्म नाम पर दृढ़ श्रम हो।
और धर्म नाम पर पूजा भी।
धर्म नाम पर सत्य ज्ञान को पढ़ते रहें पढ़ाते भी।
तो सावन फिर से आएगा।
तो जीवन फिर से आएगा।
स्वर्ग यही आ जाएगा।
हाँ स्वर्ग यहीं मिल जाएगा।
यही मिलेगा तू भी भगवन
यही देवता आएंगे।

पर क्या करूँ भगवन आए न सावन।
बीते जाएं दिन छिन आए न शुभ दिन।



ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
(स्वरचित)

Friday, February 24, 2017

मेरे भीतर बहुत क्रोध है

मेरे भीतर बहुत क्रोध है

मेरे भीतर बहुत क्रोध है।
करना इसका मुझे शोध है।
मेरे भीतर बहुत क्रोध है।

प्रिय की ये मीठी मुस्कान।
भरती क्यूँ जीवन में प्रान।
फिर क्यों बिछड़ गए हैं मीत।
कैसा ये रौरव संगीत।
गति का कैसा गतिरोध है।
मेरे भीतर बहुत क्रोध है।

मदमस्त और मधुमस्त बसंत।
लेकर आता क्यूँ है अंत।
तपती सूरज की ये किरनें।
फिर है ग्रीष्म ऋतु क्यों लाती।
इसका मुझको नहीं बोध है।
मेरे भीतर बहुत क्रोध है।

उलटे सीधे चक्र चलाकर।
किया इकट्ठा धन ये लाकर।
घर भर डाले तुमने अपने।
मिटे ग़रीबों के सब सपने।
होना इस का भी विरोध है।
मेरे भीतर बहुत क्रोध है ।

प्रभु से प्रीत लगा कर देखी।
यहीं पे जन्नत पा कर देखी।
अब क्यूँ दूर हुए हो आप।
मैंने कैसा किया था पाप।
प्रभु का ही ये सृष्टि बोध है।
मेरे भीतर बहुत क्रोध है ।

करना इसका मुझे शोध है।
मेरे भीतर बहुत क्रोध है ।

(पूज्य पिताजी की क़लम से )

इस कविता को उर्दू में पढ़ें
आपका अपना
भवानंद आर्य

मैं तो तेरे पास आ रहा हूँ


ओ३म्



दुनिया से दूर जा रहा हूँ।
और तेरे पास आ रहा हूँ।
मैं ओ प्रभु!

जिस तरहा बिजली तारों में समाई है।
जिस तरहा वायु जगत में भरमाई है।
है,  परन्तु देखी नहीं जाती।
उसी तरहा तेरी हस्ती इस संसार में मैंने पाई है।


चढ़ते सूरज से ज्ञान पा रहा हूँ।
और तेरे गुण गान गा रहा हूँ।
मैं ओ प्रभु!

चाय में चीनी और तपते गोले में अग्नि का अस्तित्व।
देख ह्रदय में मेरे हो चली है तेरी ही यादें मय चित्र और चरित्र ।
कब पूर्ण होगी मेरी साधना  इस बात की है मुझे बहुत तीव्र कामना ।

तुझे मिलने की आस पा रहा हूँ।
तेरे पहलू में ही मैं आ रहा हूँ।
ओ प्रभु!

ह्रदय में हो अंगुष्ठ मात्र आप ऐ स्वामी।
और जगत है सारा तूने अपने भीतर समेटा।
कहाँ कहाँ और है तेरा राज्य व निवास ।

तेरी हस्ती का पार नहीं पा पा रहा हूँ।
मैं तो तेरे पास आ रहा हूँ।
ओ प्रभु!


दुनिया से दूर जा रहा हूँ।
और मैं तेरे पास आ रहा हूँ।
ओ प्रभु!


प्रभु तेरी शरण में

यूट्यूब पर सुनें - मैं तो तेरे पास आ रहा हूँ 


ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
(स्वरचित)