Monday, December 24, 2018

इतिहास की परीक्षा : हास्य कविता

इतिहास की परीक्षा  थी उस दिन, चिंता से ह्रदय धड़कता था।
थे बुरे शगुन घर से चलते ही, बांया हाथ फडकता था।

मैंने सवाल जो याद किये, वो केवल आधे याद हुए।
उनमें से भी कुछ स्कूल तलक, आते आते बर्बाद हुए।

परचा हाथों में पकड़ लिया, ऑंखें मूंदीं टुक झूम गया।
पढ़ते ही छाया अन्धकार, चक्कर आया सर घूम गया।

ओ प्रश्न पत्र लिखने वाले, क्या मुँह लेकर उत्तर दें हम।

तू लिख दे तेरी जो मर्जी है,ये परचा है या एटम बम।

गीता कहती है कर्म करो, फल की चिंता मत किया करो।
मन में आये जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो।

मेरे अंतर के पट खुले, पर्चे पर कलम चली चंचल।
ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल।

मैंने लिखा पानीपत का, दूसरा युद्ध था सावन में, 
जापान जर्मनी के बीच हुआ, अट्ठारह सौ सत्तावन में। 

लिख दिया महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी जी के चेले थे। 
गांधी जी के संग बचपन में, वे आँख मिचोली खेले थे। 

राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था,
अकबर ने हिन्द महासागर, अमरीका से मंगवाया था। 

महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था,
औरंगजेब रंग में आकर, औरों की जेब काटता था। 

इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे,
जो-जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे मेँ लिख मारे।

जो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख-देख,
बोला इन सब छात्रों में, बस होनहार है यहीं एक।

औरों के पर्चे फ़ेंक दिए, मेरे सब उत्तर छाँट लिए,
जीरो नंबर देकर बाकी के, सारे नम्बर काट लिए।


कवि - ॐ प्रकाश आदित्य

संकलन - ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा