Tuesday, March 5, 2019

राजपुरुषों के लिए - 8

जब अपने बल अर्थात सेना को हर्ष और पुष्टियुक्त प्रसन्न भाव से जानें और शत्रु का बल अपने से विपरीत निर्बल हो जावे तब शत्रु की ओर युद्ध करने के लिए जावे।

जब सेना बल वाहन से क्षीण हो जाये तब शत्रुओं को धीरे धीरे प्रयत्न से शांत करता हुआ अपने स्थान में बैठा रहे।

जब राजा शत्रु को अत्यंत बलवान जाने तब द्विगुणा वा दो प्रकार की सेना करके अपना कार्य सिद्ध करे।

जब आप समझ लेवे कि अब शीघ्र शत्रुओं की चढ़ाई मुझ पर होगी तभी किसी धार्मिक बलवान राजा का शीघ्र आश्रय ले लेवे।

जो प्रजा और अपनी सेना और शत्रु के बल का निग्रह करे अर्थात रोके उस की सेवा सब यत्नों से गुरु के सदृश नित्य करे।

जिस का आश्रय लेवें उस पुरुष के कर्मों में दोष देखे तो वहां भी प्रकार युद्ध ही करे निःशंक होकर करे।

जो धार्मिक राजा हो उससे विरोध कभी न करे किन्तु उससे सदा मेल रखे और जो दुष्ट प्रबल हो उसी के जीतने के लिए ये पूर्वोक्त प्रयोग करना उचित है।

धर्म की परिभाषा : धर्म मानव की इन्द्रियों में सन्निहित रहता है इन्द्रियों से सही करने वाला धार्मिक और बुरा चलने वाला अधर्मी।  दूसरी परिभाषा के अनुसार किसी भी शुभ कर्म में कठिनता धर्म और सरलता अधर्म मानी जाती है।


इसका प्रथम खंड यहाँ पढ़ें - राजपुरुषों के लिए - ७

आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Monday, March 4, 2019

राजपुरुषों के लिए - 7

प्रधानमन्त्री, नेताओं, सैनिकों व अन्य सभी रक्षा विभाग के मंत्रियों, सुरक्षा कर्मियों, पुलिस, व अर्ध सैनिक बलों के लिए


सर्वप्रथम एक देश के नेता सुनें व इसी पर ही चले - (योग - अर्थात मिल कर रहें व चलें जब दुष्ट शत्रु से युद्ध की स्थिति हो)

मनुस्मृति (भगवान् वेद से निकाली गयी बातें)
(स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज के सत्यार्थ प्रकाश,  छठें  समुल्लास, राजधर्म विषय से )

जब राजादि राजपुरुषों को यह बात लक्ष्य में रखने योग्य है जो (आसन ) स्थिरता, (यान) शत्रु से लड़ने के लिए जाना (सन्धि ) उन से मेल कर लेना, (विग्रह) दुष्ट शत्रुओं से लड़ाई करना (द्वैती भाव) दो प्रकार की सेना करके स्व विजय कर लेना (संश्रय) और निर्बलता में दूसरे प्रबल राजा (देश) का आश्रय लेना ये छः प्रकार के कर्म यथायोग्य कार्य को विचार कर उसमें युक्त करना चाहिए। १।

राजा(प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री, सेना अध्यक्ष) जो संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैतीभाव और संश्रय दो-दो प्रकार के होते हैं उनको यथावत जाने। २।

(संधि) शत्रु से मेल अथवा उससे विपरीतता करे परन्तु वर्तमान में करने के काम बराबर करता जाय यह दो प्रकार का मेल कहाता है। ३।

(विग्रह) कार्य सिद्धि के लिए उचित व अनुचित समय में स्वयं किया व मित्र के अपराध करने वाले शत्रु के साथ विरोध दो प्रकार से करना चाहिए। ४।

(यान) अकस्मात् कोई कार्य प्राप्त होने में एकाकी वा मित्र के साथ मिल के शत्रु की और जाना यह दो प्रकार का गमन कहाता है। ५।

स्वयं किसी क्रम से क्षीण हो जाए अर्थात निर्बल हो जाय अथवा मित्र के रोकने से अपने स्थान में बैठ रहना यह दो प्रकार का आसन कहलाता है। ६।

कार्य सिद्धि के लिए सेनापति (सेनाध्यक्ष ) और सेना के दो विभाग करके विजय करना दो प्रकार का द्वैध है। ७।

एक किसी अर्थ की सिद्धि के लिए किसी बलवान राजा वा किसी महात्मा (महापुरुष) की शरण लेना जिससे शत्रु से पीड़ित न हो दो प्रकार का आश्रय लेना कहलाता है। ८।

जब यह जान लो कि इस समय युद्ध करने से थोड़ी पीड़ा प्राप्त होगी और पश्चात करने से अपनी वृद्धि और विजय अवश्य होगा तब शत्रु से मेल कर के उचित समय तक धीरज रखो। ९।

जब अपनी सब प्रजा वा सेना अत्यंत प्रसन्न उन्नतिशील और श्रेष्ठ जाने, वैसे अपने को भी समझे तभी शत्रु से विग्रह (युद्ध) कर लेवे। १०।


नोट - छः बातें और हैं इस टॉपिक परपढ़ें - राजपुरुषों के लिए - 7 

आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा आर्य

एयर स्ट्राइक के गुल्ले

शहीद कराओगे कितने मोदी ३०० सीट की खातिर
पूछे केजरीवाल तुम्हीं से पाकिस्तानी है शातिर
गुल्ले में गुल्ला है ये पाकी मुल्ला
भाई रे गुल्ला है ये गुल्ला।

कितने बम गिराए कितने ढेर कराये तुमने
पूछूँ मैं सबूत दिलाओ मैं नहीं मानूं क्यूने
ममता भी गुल्ला है ये पाकी गुल्ला
भाई रे गुल्ला है ये गुल्ला।

अखिलेश वेश में चले देश में करो जाँच दोबारा
पुलवामा में हमला हुआ कैसे भाई ये सारा
नापाक में ताली सेना को गाली दिला रहा है गुल्ला
भाई रे गुल्ला है ये गुल्ला।

सैटेलाइट पर पिक्चर देखो करो प्रमाणित घटना
एयर स्ट्राइक पर शक है मुझको ये ही मुझको रटना
मोदी झूंठा इमरान है प्यारा सच्चा सुन्दर गुल्ला
भाई रे दिग्गी गुल्ला है जी गुल्ला।

माया जाल बिछाए और जादू काला फैलता जाए
छिपा रहे हो अपनी हारें ये ये घटना कहती जाएँ
ग़ुल्लों में माया है जी गुल्ला
भाई रे गुल्ला है ये तो गुल्ला।

ध्यान भटकाया दम अटकाया मोदी जी ने सबका
सोच समझ कर महबूबा को कम अँकवाया कबका
मुफ़्ती है मुफ्त में छाया गुल्ला
भाई रे गुल्ला है ये गुल्ला।

नई जोत है नई शान है डायलॉग की भाई
कोई धर्म न कोई देश न आतंकी का भाई
सिद्धू को पी एम - पी ओ के ने खिला दिया रसगुल्ला
भाई रे ये भी गुल्ला है ये गुल्ला।

फारुख आन है फारुख शान है इमरान की पीठ थपथपाई
शांतिदूत को देकर बधाई मोदी को दी जंग ख़त्म की दुहाई
गुल्ले में सब से बड़ा पुछल्ला
भाई रे फारुख गुल्ला है ये गुल्ला।

मानो मोदी पी चित अम्बर अम  और टी गुल्ले की
तनाव ख़त्म हो नीति ऐसी ही अपनाना भाई
भाई ग़ुल्लों में है सस्ता गुल्ला
भाई ये गुल्ला है जी गुल्ला।

अम्मार बोलता स्ट्राइक एयर से साँस फट गयी भाई
विदेश मंत्री की साँस रुक गयी जन्नत में हुई रुसवाई
माने दहशतगर्द पाक के सारे मुल्ला
भाई रे विपक्षी गुल्ला हैं जी गुल्ला

सेना का पराक्रम सरकार का शौर्य कुछ भी नहीं है भाया
नापाक को ताली सेना को गाली दिलाता महामिलावट गुल्ला
रसगुल्ला नहीं ये तो गुल्ला है जी गुल्ला

स्वरचित
ब्र० अनुभव शर्मा आर्य





Friday, March 1, 2019

राजपुरुषों के लिए - 6

برباد  گلستان کرنے کو جب ایک ہی الو  کافی تھا
انجام گلستان کیا ہوگا ہر شاخ پی الو بیٹھا ہے

बर्बाद ए गुलिस्तां करने को जब एक ही उल्लू काफी था।
अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा हर शाख़ पे उल्लू बैठा है।

अब पाकिस्तान से हम चाहते हैं कि दहशत गर्दी को मिटा दें परन्तु जब तक दहशतगर्दी के नुमाइंदे और दहतगर्दों को शरण देने वाले भारत में बैठे हैं हम सिर्फ दूसरे देश को कहते अच्छे नहीं लगते।  इसलिए दहशतगर्दी के मुख्य इलाक़े कश्मीर और भारत में फैले इन उल्लुओं को वश में करने के जो क़दम सरकार आज उठा रही है वो क़ाबिल ए तारीफ़ है। 

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा मनुस्मृति से छांटे गए कुछ नियम जो सरकार और सेना व सैनिकों के काम आ सकते हैं मैं लिख रहा हूँ।  हालांकि यदि आप को उपलब्ध हो पाए तो स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश के छठे समुल्लास का मुताल्ला फरमाएं जो कि राज धर्म विषय पर आधारित है -

१- कदापि किसी के साथ छल से न वर्तें किन्तु निष्कपट होकर सब से वर्त्ताव रखें और नित्य प्रति अपनी रक्षा करके शत्रु के किये हुए छल को जान के निवृत्त (समाप्त) करें। 

२- कोई शत्रु अपने छिद्र अर्थात निर्बलता को न जान सके और शत्रु के छिद्रों को जानता रहे जैसे कछुआ अपने अंगों को गुप्त रखता है वैसे शत्रु के प्रवेश करने के छिद्र को गुप्त रखे अर्थात जग जाहिर न करे ताकि कहीं शत्रु अलर्ट न हो जाये। 

३- जिस व्यक्ति की कार्य करने की नीतियों का भेद पहले ही फूट जाता है उसका कार्य कभी भी पूर्ण होना संभव नहीं।  अर्थात कार्य करने की विधियों व अन्य सूचनाओं को अति गुप्त रखना चाहिए ताकि अपने उद्देश्य में पूर्ण हो सकें।  कार्य पूर्ण हो जाने के बाद उन नियमों व सूचनाओं को जग ज़ाहिर करना ठीक नीति है। 

४- जैसे बगुला ध्यानावस्थित होकर मच्छी पकड़ने को ताकता है वैसे अर्थ संग्रह का विचार किया करे, द्रव्यादि पदार्थ और बल वृद्धि कर शत्रु को जीतने के लिए सिंह के सामान पराक्रम करे।  चीता के समान छिप कर शत्रुओं को पकडे और समीप आये बलवान शत्रुओं से खरगोश के समान दूर भाग जाये और पश्चात उनको छल से पकडे। 

 ५-इस प्रकार विजय करने वाले सभापति के राज्य में जो परिपन्थी अर्थात डाकू लुटेरे हों उनको (साम) मिला लेना (दाम) कुछ देकर (भेद) फोड़ तोड़ करके वश में करे।  और जो वश में न हों तो अतिकठिन दंड से वश में करे। 


आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Thursday, February 28, 2019

राजपुरुषों के लिए - 5

जब कभी प्रजा का पालन करने वाले राजा को कोई अपने से छोटा, तुल्य और उत्तम संग्राम में आव्हान करे तो क्षत्रियों के धर्म का स्मरण करके संग्राम में जाने से कभी निवृत्त न हों अर्थात बड़ी चतुराई के साथ उनसे युद्ध करे जिससे अपना ही विजय हो। 

जो संग्रामों में एक दूसरे को हनन करने की इच्छा करते हुए राजा लोग जितना अपना सामर्थ्य हो बिना डर पीठ न दिखा युद्ध करते हैं वे सुख को प्राप्त होते हैं।  इससे विमुख कभी न हों।  किन्तु कभी कभी शत्रु को जीतने के लिए उनके सामने से छिप जाना उचित है।  क्यूंकि जिस प्रकार से शत्रु को जीत सकें वैसे काम करें।  जैसा सिंह क्रोध में सामने आकर शस्त्राग्नि में भस्म हो जाता है वैसे मूर्खता से नष्ट भ्रष्ट न हो जावें।  

युद्ध समय में न इधर उधर खड़े हुए, न नपुंसक, न हाथ जोड़े हुए, न जिस के सिर के बाल खुल गए हों, न बैठे हुए को, न "मैं तेरी शरण हूँ" ऐसे कहने वाले को, 

न सोते हुए को, न मूर्छा को प्राप्त हुए, न नग्न हुए, न शस्त्र से रहित, न युद्ध को देखने वाले को, न शत्रु के साथी को। 

न आयुध के प्रहार से पीड़ा को प्राप्त हुए को, न दुखी, न अत्यंत घायल, न डरे हुए, और न पलायन करते हुए पुरुष को, न सत्पुरुष के धर्म का स्मरण करते हुए को, योद्धा लोग कभी न मारें बल्कि पकड़ कर बंदीगृह में रख दें और भोजन छादन यथावत देवें।  और जो घायल हुए हों उन्हें औषधादि, भोजन छादन यथावत देवें।  न उनको चिढ़ावें न दुःख देवें।  जो उनके योग्य काम हो करवावें।  विशेष इस पर ध्यान रखें कि स्त्री, बालक, वृद्ध और आतुर तथा शोकातुर पुरुषों पर अस्त्र न चलावें।  उनके लड़के बालों को यथावत पालें और स्त्रियों को भी पालें।  उन को अपनी माँ , बहन और कन्या के तुल्य के समान समझे।  कभी विषयासक्ति की दृष्टि से भी ना देखें।  जब राज्य अच्छे प्रकार जम जाय और जिन में पुनः पुनः युद्ध करने की शंका न हो उनको सत्कारपूर्वक छोड़ कर अपने अपने घर व देश को भेज देवें। और जिन से भविष्यत् काल में विघ्न होना संभव हो उनको सदा कारागार में रखें। 


मनुस्मृति , सत्यार्थ प्रकाश - राजधर्म विषय - समुल्लास ६ से
द्वारा ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Wednesday, February 27, 2019

यू एन ओ क्या है?

UNO  क्या और क्यों / 
क्या पी० एम०  की विदेश यात्रायें ज़रूरी थीं ?
 आम तौर पर आम जनता जानती नहीं कि यू० एन०  क्या है व कोई भी बात यू एन ओ में रखने से क्या लाभ किसी देश को पहुँचता है? ग्रामीण व कम पढ़े लिखे लोग यू० एन०  का मतलब यू० एस० ए०  अर्थात अमेरिका से लेते हैं और सोचते हैं कि मात्र अमेरिका या और किसी देश से किसी बात को कहने से क्या लाभ है।  उन्हें मेरे भाइयों बहनों को इस लेख को अवश्य ही पढ़ना चाहिए। 

वास्तव में यू० एन० एक ऐसी संस्था है कि जिसमें १९२ सदस्य होते हैं।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर क़ानून व्यवस्था, शांति व्यवस्था व अन्य  मुद्दे यह बनाती, तय करती व संशोधित करती है।  UNSC इसी की एक ऐसी संस्था है जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा के कार्यों को देखती है।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार कानून व अन्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को बनाना व संशोधित करना इसका मुख्य कार्य है। जिस प्रकार जिला कोर्ट के ऊपर हाई कोर्ट और उससे ऊपर सुप्रीम कोर्ट होता है।  व सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपने देश में मानना अनिवार्य है, जिस प्रकार संसद में बने नियम सभी को मानने आवश्यक होते है इसी प्रकार यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय स्तर की है और इसमें बने क़ानून व नियम सभी देशों को मानने अनिवार्य हैं।  यह अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् है जिसमें कुल १५ सदस्य होते हैं।  जिसमें कि पाँच सदस्य स्थायी होते हैं जिनको वीटो पावर के नाम से भी जाना जाता है। पांच वीटो पावर हैं - चीन, रूस, अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन एवं फ्रांस।  दस अस्थाई सदस्य होते हैं और ये अस्थायी सदस्य १९२ सदस्यों में से वोट के आधार पर दो वर्ष के लिए चुने जाते हैं।  

अब भाइयों बहनों यदि भारत के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनते हैं तो भारत भी UNSC  का सदस्य बन सकता है जिससे कि अंतर्राष्ट्रीय कानून व्यवस्था में इसका भी दखल हो जायेगा।  जिससे कि अपनी आवश्यकता के क़ानून भारत UNSC में पास करवा सकता है। वीटो पावर किसी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पारित होने वाले प्रस्ताव पर 'नो' लिखने का अधिकार रखती है। यदि पांच में से किसी भी वीटो पावर प्राप्त देश ने 'नहीं' लिख दिया तो वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता। यहीं चीन भारत के खिलाफ करता चला आया है अभी तक पकिस्तान के मामले में।  जिसके कारण पकिस्तान अभी तक आतंकी देश घोषित नहीं हो पाया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर। 

यह पोस्ट गाँव में रहने मेरे उन भाई बहनों को समर्पित है जो कि इस विषय में कुछ भी नहीं जानते और प्रश्न करते हैं कि जब देश को ज़रूरत थी तो मोदी जी बाहर के देशों की यात्रा कर रहे थे। भाईयों बहनों यह यात्रा मात्र नहीं थी अन्य जो सरकारें आयीं वह इस काम को बिलकुल न कर पायीं और न ही उन लोगों की अंतर्राष्ट्रीय यात्रायें इतनी सफल हो पाती थीं।  राहुल गाँधी ने भी संसद में माना है कि मोदी बहुत पावरफुल व्यक्ति हैं।  विदेश में जाना और उन लोगों को अपने पक्ष में करना कोई आसान काम नहीं।  उस में पद और फिर व्यक्तित्व दोनों ही आवश्यक होते हैं  जो मोदी जी ने कर दिखाया। अभी पुलवामा वाली दुखद घटना को केवल १४ दिन हुए हैं और पकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद अर्थात जेहाद के मुद्दे पर सभी देश भारत के साथ खड़े हैं  और चीन भी भारत के विपक्ष में नहीं।  यह सब माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के अथक प्रयासों के कारण ही है। 

और विस्तार से जानने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें/ लिंक कॉपी और पेस्ट करें और विस्तार से जानें -



UN (यू० एन० ) -https://en.wikipedia.org/wiki/United_Nations
UNSC(यू०एन०एस०सी०) - https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_members_of_the_United_Nations_Security_Council


आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Tuesday, February 26, 2019

राजपुरुषों के लिए - 4

ॐ जब सभेश राजा इन्द्र अर्थात विद्युत् की तरह शीघ्र ऐश्वर्य का कर्ता, वायु के समान सब के प्राणवत प्रिय  और ह्रदय की बात जानने वाला, यम पक्षपातरहित न्यायधीश के समान वर्त्तनेवाला , सूर्य के समान न्याय, धर्म, विद्या का प्रकाशक अन्धकार अर्थात अविद्या अन्याय का निरोधक, अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करनेवाला, वरुण अर्थात बांधनेवाले के सदृश दुष्टों को अनेक प्रकार से बांधने वाला, चंद्र के समान श्रेष्ठ पुरुषों को आनंद दाता , धनाध्यक्ष के समान कोशों का पूर्ण करने वाला सभापति (प्रधान मंत्री) होवे। 

जो सूर्य के समान प्रतापी सब के बाहर और भीतर मनों को अपने तेज से तपानेवाला, जिसको पृथ्वी में करड़ी दृष्टि से देखने को कोई भी समर्थ न होवे।  

और जो अपने प्रभाव से अग्नि, वायु, सूर्य, सोम, धर्म प्रकाशक (धर्म मानव की इन्द्रियों में समाहित है जैसे सुदृष्टि धर्म, कुदृष्टि अधर्म, सुकर्म धर्म, कुकर्म अधर्म, अच्छा बोलना धर्म, बुरा बोलना अधर्म, सच बोलना धर्म, झूठ बोलना अधर्म आदि आदि ) धनवर्धक, दुष्टों का बन्धनकर्ता, बड़े ऐश्वर्यवाला होवे, वही सभाध्यक्ष सभेश होने के योग्य होवे। 

जो दंड है वही पुरुष राजा, वही न्याय का प्रचार कर्ता और सब का शासन कर्ता, वहीँ चार वर्ण और आश्रमों के धर्म का प्रतिभू अर्थात जामिन है। 

वहीँ प्रजा का शासनकर्ता, सब प्रजा का रक्षक, सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता है इसीलिये बुद्धिमान लोग दंड को ही धर्म समझते हैं। 
 ॐ 

ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Monday, February 25, 2019

एक कविता : दशहतगर्दी के खिलाफ

आतंकवाद के खिलाफ एक कविता 


सुन लो दहशत गर्दों सुन लो आ गयी तुम्हारी बारी है।
पी ओ के से कश्मीर तलक अब जंग हमारी जारी है।



अभी तो ये आगाज़ हुआ है अभी से क्यों घबराते हो।
वन्दे मातरम के नारों से जब तुम यूँ थर्राते हो।

कैसे करोगे सेना का तुम मुक़ाबला ऐ जान ए जां।
जाने मन तुम दहशत गर्दी पर अब क्यों पछताते हो।

सुखोई और मीराज तलक अब लगे ठिकाने दुश्मन पर।
४५ के बदले ४५० गिराकर उतरे जब वापस अपने अड्डे पर।
 
मान जाओ ना जनाब ए आली अब चूं चं न करना तुम।
मंगलवार को मंगल-वार सुन अब चुप हो के पड़ना तुम।

जय बजरंग बली।  भारत माता की जय।  वन्दे मातरम।  जय जय भारतीय सेना।

यूट्यूब पर सुनें - आतंकवाद के खिलाफ एक कविता 

ब्र० अनुभव शर्मा

Sunday, February 24, 2019

राजपुरुषों व सैनिकों के लिए -३

हमारे वीर सैनिकों के लिए यह कलेक्शन है।


गीता।२।२३
१. नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।१

ऋग्वेद से -
२. शं  नः कुरु प्रजाभ्य: अभयं नः पशुभ्यः।२

अथर्ववेद ।१९।१५।५
३. ओ३म् अभयंन: करत्यन्तरिक्षमभयं द्यावा पृथिवी उभे इमे। अभयं पश्चादभयं पुरस्तादुत्तरादधरादभयं नो अस्तु।३

अथर्ववेद ।१९।१५।६।
४. ओ३म् अभयं मित्राद भयम् मित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षात्।
अभयं नक्तमभयं दिवा न: सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु।४

५. न मे भक्तः प्रणश्यति। महावाक्य, गीता।

६. सन्देहात्मा विनश्यति।महावाक्य, गीता। 




अर्थ : 

1. न अग्नि इसे जला सकती न शस्त्र इसे बेध सकते वह अजर अमर आत्मा हैं हम। सो कर्तव्य में डंट जा। परमात्मा सदा अदृश्य रूप में हमारे साथ है। और वह नहीं है ऐसा नहीं है, वह है। यह वेद के द्वारा परमात्मा खुद कहते हैं।

2. हे प्रभु मुझे शत्रु से पूर्ण निर्भय कर।

3. मेरे प्रभु अंतर्यामी सब विधि अभय प्रदान करें।
अंतरिक्ष द्यावा पृथ्वी सब दिशा भय का नाश करें।

4. मित्र अमित्र जाने अनजाने, दिन रात अभय बनावें।
सभी दिशाएं मित्र बनें जीवन में निर्भयता लावें।

५. मेरा भक्त कभी दुर्गति या विनाश को प्राप्त नहीं होता।

६. जो लोग परमात्मा, सदगुरु , विद्वान्, ऋषि मुनि, वैज्ञानिकों व अपने माता पिता के वचनों पर संदेह करते हैं वो शीघ्र ही विनाश को प्राप्त हो जाते हैं।



ब्रह्मचारी अनुभव आर्य

राजपुरुषों के लिए-2

राजपुरुष सभापति (प्रधानमन्त्री) कैसा हो?

परमात्मा कहते हैं कि -

हे मनुष्यों! जो इस मनुष्य के समुदाय में परम ऐश्वर्य का कर्ता शत्रुओं को जीत सके, जो शत्रुओं से पराजित न हो, राजाओं(Leaders) में सर्वोपरि विराजमान, प्रकाशमान हो, सभापति (प्रधानमन्त्री) होने को अत्यंत योग्य, प्रशंसनीय गुण, कर्म, स्वभावयुक्त, सत्करणीय, समीप जाने और शरण लेने योग्य, सब का माननीय होवे उसी को सभापति राजा(Ruler) करें।  अथर्व० ६-१०-१८-१

हे विद्वानों राजप्रजाजनों तुम इस प्रकार के पुरुष को बड़े चक्रवर्ती राज्य, सबसे बड़े होने, बड़े-बड़े विद्वानों से युक्त राज्य पालने और परम ऐश्वर्ययुक्त राज्य और धन के पालन के लिए सम्मति करके सर्वत्र पक्षपात रहित पूर्ण विद्या विनययुक्त, सब के मित्र सभापति राजा को सर्वाधीश मान के सब भूगोल शत्रु रहित करो। यजु० ९-४०

ईश्वर उपदेश करता है हे राजपुरुषों तुम्हारे आग्नेयादि अस्त्र और शतघ्नी(तोप ) भुशुण्डी (बन्दूक ) धनुष बाण करवाल (तलवार) आदि शस्त्र शत्रुओं के पराजय करने और रोकने के लिए प्रशंसित  हों और तुम्हारी सेना प्रशंसनीय होवे कि जिससे तुम सदा विजयी होवे परन्तु जो निन्दित अन्याय रूप काम करता है उसके लिए पूर्व चीज़ें मत होवें अर्थात जब तक मनुष्य धार्मिक रहते हैं तभी तक राज्य बढ़ता रहता है और  दुष्टाचारी होते हैं तब नष्ट भ्रष्ट हो जाता है। ऋग० १-३९-२ 

Saturday, February 23, 2019

राजपुरुषों के लिए-1

🕉🇮🇳जैसा परम विद्वान अध्यापक गुरु होता है वैसा विद्वान सुशिक्षित होकर Ruler व सैनिक को योग्य है कि इस सब राज्य की रक्षा यथावत करे - मनु०

ईश्वर उपदेश करता है कि राजा व प्रजा के पुरुष(Leaders, soldiers and civilians) मिल कर सुख प्राप्ति और विज्ञान वृद्धि कारक राजा प्रजा के संबंध रूप व्यवहार में तीन सभा नियत करके बहुत प्रकार के समग्र प्रजा(all people) संबंधी मनुष्यादि प्राणियों को सब ओर से विद्या, स्वातंत्रय, धर्म(धर्म मानव की इंद्रियों में सन्निहित रहता है) सुशिक्षा और धनादि से अलंकृत करें।
ऋग०। 3।38।6।

Tuesday, January 22, 2019

आत्मा को अपनी ऐसे सजा


भाइयों बहनों अगर आपको सच्चा मनुष्य बनना है तो ईश्वर ने वेद में बताया है -
 

जीवन को अपने ऐसे सजा जिससे उजाला पूर्ण हो।
मन को तू अपने ऐसे सजा जिससे मधुरता पूर्ण हो ।
तन को तू अपने ऐसे सजा जिससे भरा बल पूर्ण हों ।
बुद्धि को अपनी ऐसे सजा जो ज्ञान से भरपूर हो ।
इन्द्रियों को अपनी ऐसे सजा  जिससे सदा दुःख दूर हो।
प्राणों को अपने ऐसे सजा मृत्यु भी  जिससे दूर हो।
सत्यानंद योगाभ्यास से सजा जिससे सदा आनन्द हो।
सत्यानंद सत्य से सजा जिससे सदा आनन्द हो।
सत्यानंद ओ३म् से सजा जिससे सदा आनन्द हो।
आत्मा को अपनी ऐसे सजा जिससे तुम्हारा मोक्ष हो॥

और ये तभी हो सकता है-

श्वांस श्वांस पर ॐ भज वृथा श्वांस मत खोवे। 
न जाने ये स्वांस भी आये या ना आवन होवे।
परमात्मा हर जगह मौजूद है पर नजर आता नहीं।
योग साधन के बिना कोई उसे पाता नहीं।
रात के चौथे प्रहरों में एक दौलत लुटती रहती है।
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है।
उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन  कहाँ जो सोवत है।
प्रभु जागत है तू सोवत है।



आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा