Monday, December 24, 2018

इतिहास की परीक्षा : हास्य कविता

इतिहास की परीक्षा  थी उस दिन, चिंता से ह्रदय धड़कता था।
थे बुरे शगुन घर से चलते ही, बांया हाथ फडकता था।

मैंने सवाल जो याद किये, वो केवल आधे याद हुए।
उनमें से भी कुछ स्कूल तलक, आते आते बर्बाद हुए।

परचा हाथों में पकड़ लिया, ऑंखें मूंदीं टुक झूम गया।
पढ़ते ही छाया अन्धकार, चक्कर आया सर घूम गया।

ओ प्रश्न पत्र लिखने वाले, क्या मुँह लेकर उत्तर दें हम।

तू लिख दे तेरी जो मर्जी है,ये परचा है या एटम बम।

गीता कहती है कर्म करो, फल की चिंता मत किया करो।
मन में आये जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो।

मेरे अंतर के पट खुले, पर्चे पर कलम चली चंचल।
ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल।

मैंने लिखा पानीपत का, दूसरा युद्ध था सावन में, 
जापान जर्मनी के बीच हुआ, अट्ठारह सौ सत्तावन में। 

लिख दिया महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी जी के चेले थे। 
गांधी जी के संग बचपन में, वे आँख मिचोली खेले थे। 

राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था,
अकबर ने हिन्द महासागर, अमरीका से मंगवाया था। 

महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था,
औरंगजेब रंग में आकर, औरों की जेब काटता था। 

इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे,
जो-जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे मेँ लिख मारे।

जो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख-देख,
बोला इन सब छात्रों में, बस होनहार है यहीं एक।

औरों के पर्चे फ़ेंक दिए, मेरे सब उत्तर छाँट लिए,
जीरो नंबर देकर बाकी के, सारे नम्बर काट लिए।


कवि - ॐ प्रकाश आदित्य

संकलन - ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Wednesday, June 20, 2018

हिन्दू धर्म अपनाना

मन से मोह विचार कर
रख कर्त्तव्य का ध्यान
योगारूढ़ मस्तिष्क से कर
सामाजिक रीतियों का ज्ञान
कहता हूँ मन की अपने मैं
ना जानूँ वेद पुरान
पर सत्य लिखूँ और सत्य वचन
ही है मेरी बिलकुल बस पहचान।

शाकाहार से तृप्त हो
कर निर्गुण का ध्यान
पुरुषारथ परमारथ व ज्ञान कर
पुस्तक उपनिषद और वेद से
पाले आध्यात्मिक विद्या का भान
तू करले धर्म को प्यार अरे
करवाता हूँ मैं भान
गर नियम यहीं अपनाएगा
करेगा गहन विज्ञान का पान
हो जाएगा मृत्यु विजय तू
यह सत्य वचन कर ध्यान।

गर मांसाहार अपनाएगा
नहीं कभी कर पायेगा जीवन में
आध्यात्मिक विज्ञान का ज्ञान
यह विज्ञान है श्रेष्ठ 25 गुण
साधारण भौतिक विज्ञान से यारा
समय रहते कर ले पहचान।

धर्म हिन्दू है पुराना 4000  वर्ष
मुस्लिम 1400  का है
क्रिश्चियन है 2000 वर्ष पुराना
सो सब धर्मों में धोखा है
दो अरब पुरानी यह संस्कृति
अपना कर, पकड़ कर चल इसको ऐ मित्र
वरना धोखा खायेगा
एक दिन अवश्य ही तू पछतायेगा।

करा रहा हूँ ज्ञान
सुन ले ऐ बल शक्तिमान
बुद्धि, सहनशीलता सुंदरता  से पूरित
तेरे ये बिगड़ न जाएँ प्यारे गुण
इसलिए प्यारे शाकाहार अपनाना
माँसाहार से कभी न धोखा खाना
हिन्दू धर्म अपनाना
मुस्लिम से तौबा पाना
भौतिक विज्ञान को जान अरे
ये बाह्य पदार्थ का दाता हैं
आध्यात्मिक विज्ञान परन्तु अरे
तेरा तीव्र, आतंरिक, वास्तविक विकास का दाता है।

इसको तू अपनाना
समय रहते सुधर जाना।

यूट्यूब पर सुनें - हिन्दू धर्म ( एडिटेड)

आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
(स्वरचित)

Monday, June 11, 2018

भला होगा किसी बेआसरे को आसरा देना

भला होगा किसी बेआसरे को आसरा देना।
मुसीबत में किसी मजबूर की बिगड़ी बना देना।

अगर प्यारे तू ये चाहे कि जग में नाम हो जाए।
परायी आग में पड़कर खुदी अपनी जला देना।

तुम्हारे सामने गर हो तड़पता प्यास का मारा।
उसे दो घूंट पानी के दया कर के पिला देना।

करो कुछ काम नेकी के मचाना शोर न हरगिज़।
मगर उसको हमेशा के लिए दिल से भुला देना।

तेरे वीरान जीवन को प्रभु फूलों से भर देगा।
किसी रोते हुए दिल को ज़रा तुम भी हंसा देना।

बहारों में तो हँसते चमन के फूल सब लेकिन।
हो जब हीशान रखता हैं ख़िज़ाँ में मुस्कुरा देना।

तेरे पीछे जो आते हैं किसी को न लगे ठोकर।
मिले पत्थर जो रस्ते में पथिक उसको हटा देना।


(पथिक भजन)

प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा


Sunday, May 6, 2018

श्री भगवान जी का स्वरुप प्रत्यक्ष मानकर 'वन्दना'

श्री भगवान जी का स्वरुप प्रत्यक्ष मानकर 'वन्दना' 

भगवान तुम्हारे मन्दिर में
मैं अपने मंदिर की बात बताने आया हूँ।

तुम तो हो सारे जग के स्वामी, मैं तो तेरा भिखारी हूँ।
एक जपू , जपू न दूजा, मैं तो तेरा ही पुजारी हूँ।
पूजा पाठ की रीत ना जानूँ , मैं तो शीश झुकाने आया हूँ।

नश्वर तन जो तूने दिया, उसमें पहले अपना निवास ठहराया है।
तीन गुणों की माया से इसको नाच नचाया है।
नश्वर तन के दो हाथों से मैं श्रद्धा सुमन चढाने आया हूँ।

खंड पिंड ब्रह्माण्ड सकल में विधि विधि ज्योति समानी।
थाली गगन दीप रवि, चन्दा जौ लख तारा छिटकानी।
फूटी किरण जगत पर पसरी मैं तो यहीं देखने आया हूँ।

जल की झलक अगम की आभा जग जीव आधारी।
अटल ध्यान धर तेरा धरणी भार अठारह धारी।
ॐ सोऽहं शब्द झकारे अनहत बाजे बाजें।
गावन हारे तेरे द्वारे जग जीव बिराजे, मैं तो यहीं बताने आया हूँ।

चार पदारथ तुम्हारे हाथ आठ सिद्धि नव निधि के दाता।
आवागमन का लगा है ताँता  मैं याचक तू समर्थ दाता।
आवागमन से मुझे छुड़ा दो मैं तो यहीं गौरव मांगने आया हूँ।



संग्रहकर्ता
जगराम सिंह 
अध्यक्ष , आर ० आर ० मॉडर्न पब्लिक स्कूल, काजीसोरा 

निवासी ग्राम इस्माईलपुर, जनपद बिजनौर, उत्तर प्रदेश 


द्वारा 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

Friday, May 4, 2018

ॐ नाम निर्गुण की वाणी

सन्तों आओ जी राह में मिलेंगे बड़े सरकार(ईश्वर)।
ॐ नाम निर्गुण की वाणी शब्द है उसकी पेशानी।
वेद पुराण उसका पता बतावें समझे विरला ब्रह्म ज्ञानी।
समझ समझ कर मुक्ति पाए काल पास के बीच न आये।
वह शमाँ है परवाना मैं हूँ एक अलमस्त दीवाना।
अब मुझको आया होश इसमें ना है कुछ उनका दोष।
मैं लुट गया रे मैं मर गया रे अपने कर्मों की मार।

मेष विश्वम्भर तप व्रतधारी जो जुगत और भोग भुगतारी।
आया मुझ में चल आया  संतोष दया उर धारे काम क्रोध मद लोभ गए।
भ्रम का बहुत भगाया रे, ब्रह्मस्वरूप परम तप धारी डूबे जीव को भवपारी।
ज्ञान अगम का लाया रे उसने मेरे कष्ट निहारे सुनकर मेरी पुकार।
ताल बेल जब घर में लागी बह नैन से नीर पड़े पर मुझे सतगुरु मिल गए।
चली न कोई तदबीर यह कमान गुरु कसके मारी शब्द सुरगगी तीर।
हीरा ले गए ऐसा अद्भुत तीर मेरे गुरु की शब्द निशानी।
शब्द में है रे संसार।
राम रूप से रावण मारा कृष्ण रूप से कंस पछाड़ा।
हिरण्यकश्यपु को बलि बनाया सारा जग दहलाया।
भक्त प्रहलाद की रक्षा हेतु नर सिंह रूप बनाया।
तेरी महिमा अजब निराली तेरी महिमा अपरम्पारी।
गोपियों (वेद की ऋचाएं) संग रास रचाई गीता में उपदेश दिए बन के कृष्ण मुरारी।
तुमतो हो वामन रूप रमिया सारे जग के हो रखिया।
अब इस जगजीव का कर दो बेडा पार।


संग्रहकर्ता
जगराम सिंह 
अध्यक्ष , आर ० आर ० मॉडर्न पब्लिक स्कूल, काजीसोरा 

निवासी ग्राम इस्माईलपुर, जनपद बिजनौर, उत्तर प्रदेश 


द्वारा 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

पाइथागोरस के प्रमेय से ब्रह्म को जानना

पाइथागोरस के प्रमेय से ब्रह्म को जानना (शरीर में प्रमाण )




                                                                  सृष्टि

   ब्रह्म                                                         जीव                                            माया (प्रकृति)
अज्ञात                                    मन, बुद्धि, आत्मा, प्राण, संस्कार           पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, प्रकाश
                                                १      २        ३         ४        ५                  १        २       ३        ४          ५


पाइथागोरस प्रमेय के अनुसार समकोण त्रिभुज में कर्ण पर बना वर्ग शेष दो भुजाओं के वर्गों के योग के बराबर होता है।  

अतः  



अतः ब्रह्म शून्य है। 

प्रमाण - इस प्रमाण को स्वयं ही प्रयोग करके देखो तो अच्छा है।  जब मनुष्य ॐ का उच्चारण करता है तो ॐ शब्द के साथ बाहर की हवा अंदर जाती है।  और अंदर वाली वायु का बाहर वाली वायु से मिलान जहां होता है वहीँ पर शून्य है।  यहीं क्रिया श्वांस का सञ्चालन करती है।  



१२-०६-२००८                                                                                      
श्री गुरु की कृपा से 
जगराम सिंह 
अध्यक्ष , आर ० आर ० मॉडर्न पब्लिक स्कूल, काजीसोरा 

निवासी ग्राम इस्माईलपुर, जनपद बिजनौर, उत्तर प्रदेश 



द्वारा 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 





Thursday, May 3, 2018

श्रद्धांजलि विधायक श्री लोकेन्द्र जी को

श्रद्धांजलि 

धरती थे अम्बर थे
विनोदी थे समन्दर थे।
जो ग़रीबों के मसीहा थे
वो लोकेन्द्र विधायक थे।
मूरत थे शिवाला थे
अंधेरों में उजाला थे।
जो निडर साहसी नेता थे
वो लोकेन्द्र विधायक थे।
वे एक सच्चे रहबर थे
सब के लिए बराबर थे।
औरों को रोते देखा है
वो देवतुल्य लोकेन्द्र थे।
दिवंगत आत्मा की बात रख लो
प्यार की हर बात उनकी याद रख लो।
हर हाल में ये इलेक्शन जीत कर
दोस्तों इंसानियत की लाज रख लो।
जीवन को अपने कान्ति देदो
दिवंगत आत्मा को शान्ति देदो।
भेड़ियों के झुण्ड का नाश कर
शेर को श्रद्धांजलि देदो।



रचयिता - विश्वपाल सिंह त्यागी, नायक नंगला , 8650209774 


द्वारा
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

Monday, April 23, 2018

ॐ महिमा

अथ ॐ महिमा 

ॐ नाम अनमोल है अमृत का भण्डार धार हृदय में नाम यह होगा बेड़ा पार। 
ॐ नाम अक्षर अविनाशी घट घट व्यापक आनन्द नाशी  सर्व दुःखों का औषध नाम। ॐ नाम जप सुबहो शाम। ॐ नाम आनंद प्रदाता बन्धु सखा भ्राता पितु माता। सच्चा मित्र है केवल नाम ॐ नाम मुक्ति का धाम। 

ॐ नाम सबसे बड़ा इससे बड़ा न कोई जो इसका सुमिरन करे शुद्ध आत्मा होई। 
ॐ नाम हृदय में धार इसकी महिमा अपरम्पार। रिद्धि सिद्धि का दाता ॐ  सिद्ध विनाशक त्राता ॐ। 
इसमें त्राटक खूब लगाओ मनवांछित फल आनंद पाओ।  अंतर्ज्ञान की ज्योति जगाओ पाप ताप संताप मिटाओ। 

ॐ नाम अमृत भरा सर्व सुखों की खान सबसे उत्तम नाम यह करते  वेद बखान। 
वेदों ने है ॐ बखाना शास्त्रों ने इसको है माना। दर्शन शास्त्र करें व्याख्यान ॐ नाम अमृत का खान। 
ॐ की महिमा गाती गीता भक्तों को जो करे पुनीता। ब्राह्मण ग्रंथों का यह सार ॐ नाम की महिमा अपार। 

ॐ नाम में है भरा सब नामों का सार ॐ नाम सृष्टि में हुआ प्रथम विस्तार। 
ब्रह्मा विष्णु और महेश गुणवाचक हैं नाम गणेश। शम्भू शिव शंकर भगवान नाम सभी ईश्वर के जान। 
क्रिया शक्ति व विश्व महान अ  अक्षर के हैं व्याख्यान।  उ अक्षर की महिमा अनंत वायु विरत जगती जड़ पंथ।
म की महिमा कौन बखाने ईश्वर आदित्य प्राज्ञ ही जाने।

ॐ नाम अक्षर बना अ उ म का योग।  इसके शुभ  संयोग से नष्ट भ्रष्ट हों रोग।
महिमा ऋषि मुनियों ने पायी सिद्ध जनों ने मुक्ति पायी।  अन्तर्मुख होकर जब ध्याया ॐ नाम रस अमृत पाया।
अर्थ विचार करे जो जाप उसके नाशे  तीनों ताप।  ॐ नाम में मन जो लगावे चार पदारथ सो जन पावे।

ॐ नाम सुमिरो सदा त्रिकुटी में कर ध्यान ॐ नाम के ध्यान से सिद्ध समाधि ज्ञान।
ध्यान ज्ञान का साधक ॐ  कष्टों का बाधक   है ॐ।  दुरितों  का है भक्षक  ॐ सिद्ध विनाशक रक्षक ॐ।
ॐ नाम की महिमा अभारी ॐ नाम है अति सुखकारी अनुभव सिद्ध ॐ का नाम जिसमें मन पावे विश्राम।

ॐ नाम के धनुष से कर आत्म संधान ब्रह्म लोक को बेधकर हो जा अंतर्ध्यान।
अंतर ज्योति ज्योत जगे जब मन में जब मन में।  जगमग ज्योति जगे जीवन में जीवन में।
ज्योतिर्मय है ॐ प्रकाश करता पाप ताप का नाश। इसमें योगी ध्यान रमाते  और इससे है परम मति पाते।
अमृत ज्योत बहे जब भीतर चंचल चित्त हो वश में ही कर। शोधन वोधन सब हो पावे ॐ नाम जब सहज समावे।

ॐ नाम के जाप का कर प्रतिदिन अभ्यास। भक्ति भाव शुभ भावना रख करके विश्वास।
एक तत्व में ध्यान रमाना निश्चय ईश कृपा है पाना। ईश कृपा है अति अनूप मुद मंगलमय आनंद रूप।
जो मन ईश कृपा को पावे सब जग उसको शीश झुकावे। बाल न बांका हो उस जन का जो स्वामी हो अपने मन का।

ॐ नाम बल तेज को अपने मन में धार। गायत्री का जाप कर जो वेदों का सार।
वेद सार गायत्री है ॐ  उसीका सार ॐ नाम के जाप से मिले मोक्ष का द्वार।
ॐ नाम गायत्री का सार इस के जप से बेड़ा पार। ॐ नाम की शोभा न्यारी भक्त जनों को लगती प्यारी।
जप से दूर न हरगिज़ रहना।  अपना सुख दुःख उससे कहना।

ॐ नाम से सींच कर अपना आप सुधार। आप सुधर कर और का होगा कुछ उपकार।
पर उपकार हृदय में लाना ॐ नाम जप न बिसराना।  सेवा संयम की हो टेक ॐ नाम अंतर में एक।
एक इष्ट की पूजा सुखकर एक देव हो ॐ कृतोस्मर।  एक देव केवल भगवान् ॐ नाम जिसका आस्थान

वेद शास्त्र मिलकर कहें अक्षर ॐ अनूप जिसकी छाया में रहें राजा रंक और भूप।
ॐ कृपा जब ही हो जावे छलना रस्ता झर झर जावे। भव भय बंध करें सब दूर आनंद से कर दे भरपूर।
परमानंद का बोध करावे सुख शान्ति हृदय में लावे। सात्विक भाव का उदय विकास यश और तप का होवे नाश।

ॐ नाम अमृत भरा अतिशय मंगल मूल।  ॐ नाम के जाप से मिटे हृदय के शूल।
ॐ नाम भक्तों का प्यारा, संत जनों को तारन हारा। प्रेम प्रताप बढ़ावे ॐ जगमग ज्योति जगावे ॐ।
ॐ नाम से ज्ञान समाने, ॐ नाम मन चित्त को शोधे। घंटे बजे बजे घड़ियाल ॐ नाम धुन हो तत्काल।

बिन बाजा झंकार हो बिन चंदा उजियार।  ॐ नाम के स्रोत की बरसे अमृत धार।
आनंद वर्षा तब हो पावे ॐ नाम से चित्त लगावे।  रुखा सूखा हो सब दूर ॐ नाम रस से भरपूर।
तृषा बुझे चिंता नहीं आवे जिनसे जब चित्त में छा जावे। तमस मिटे आशा व समता ॐ नाम में मन जब रमता।

ॐ नाम के ध्यान से मन नम हो तत्काल। शुद्ध चेतना ज्ञान से कटे कष्ट विकराल।
ॐ द्वारे काजरकारे घट घट जापे खारे खारे  जब हो वर्शन दर्शन  रुखा अमृत बरसे मधुर सोम का।
पावन हीरा मस्त हो  पावे जीवन हीरा मस्त हो जावे।  दर्शक भी पावे आनंद ॐ नाम है करुणापन्न।
ॐ नाम में सुरति दिखाना कभी भी उसको न बिसराना।

ईश कृपा बरसे जहाँ होवे परमानंद।   परमानंद के योग से मिटे सकल दुःख द्वन्द।
परमानंद पावे जब प्राणी अन्तर्मुख हो जावे वाणी। क्रिया कलाप सकल हो बंद ॐ नाम गूंजे आनंद।
रसना ॐ नाम रस पीवे पी पी कर पापों को धोवे। सुख शांति आनंद का स्रोत ॐ नाम की निर्मल ज्योत।

ॐ नाम की ज्योति से मिटे सकल अज्ञान।  ज्ञान प्रकाशे चित्त में विकसे निर्मल ज्ञान।
ज्ञान बिना जीवन निस्सार ज्ञान बिना  ना कटे अतिहार ज्ञान बिना नीरस सब ग्रन्थ ज्ञान बिना सूझे नहीं पंथ।
ज्ञान बिना बंधन नहीं टूटे ज्ञान बिना साधन सब झूंटे।  ॐ नाम से ज्ञान प्रकाशे ॐ नाम से संकट नाशे।

ॐ नाम प्रगटे जहां सुख सिद्धि का सार।  ॐ नाम के जाप के सुधरें बिगड़े काज।
ॐ नाम महिमा अति भारी जो है अतिशय मंगलकारी। ॐ नाम की पूजा अर्चा ॐ नाम की सुन्दर चर्चा।
ॐ नाम जो रसना गावे तीनों ताप को दूर भगावे।  सबसे दूर हो ३२ पाप जगमग जगमग ज्योति विकास।

ॐ नाम आदित्य है सबसे है अति दूर।  जो उसको उर धार ले जीवन हो भरपूर।
चंचल चित्त जब मन भटकावे चिंता चिता नज़र सब  आवे चिंतन ॐ नाम का करना।
चित्त चंचल से कभी न डरना।  नाम अभ्यास से वश में करना वैरागी बन  धीरज धरना।

दीर्घ प्रणव अभ्यास से चंचल चित्त रुक जाए। अन्तर्मुख हो ध्यान में प्रभु शरण चित्त लाये।
देवों की एक अनुपम नगरी अष्ट चक्र नव द्वारों जकड़ी उसमें एक हिरण्मय कोष सरहित ज्योति से आहोश
ॐ नाम उसमें समावे चेतन भाव तभी जग जावे। जड़ता मिटे अविद्या नाशे जीवन ज्योति हृदय प्रकाशे।

ॐ नाम के नाद उठे मृदुल झंकार जो इसको उर धार ले उसका बेडा पार।
श्रवण मनन करके  निदिध्यासन   निदिध्यासन से निश्चल आसन।  आसन सिद्धि जब हो जावे रिद्धि सिद्धि सब भागी आवे।
चंचल मन पावे विश्राम जब निकले मुख से प्रभु नाम। जो इस नाम में चित्त लगावे जीवन मुक्त हो मुक्ति पावे।

मुक्ति मिले उस भक्त को जिसका शुद्ध आचार सेवा संयम सरलता सत्संग परउपकार।
परउपकार को जो अपनावे जीवन मुक्ति सो जन पावे। पर पीड़ा जो सहे  निरंतर उसका शुद्ध और निर्मल अंतर।
निर्मल मन उद्धार को चाहवे निर्मल मन वांछित फल पावे। निर्मल मन से कटे प्रभात उस जन का हो बेडा पार।

निर्मल मन में प्रगटे ज्योति उत्तम ज्ञान निर्मल मन में उपजे सकल ज्ञान विज्ञान।

ॐ नाम से निर्मल ज्ञान।  ॐ नाम सबसे प्रधान। ॐ नाम निज नाम प्रभु का।
ॐ नाम है प्रेम प्रभु का। ॐ नाम उपमा नहीं पावे। ॐ नाम जो भी जन गावे।
ॐ नाम जपना नित आप। ॐ नाम हरे तीनों ताप। ॐ नाम हरे तीनों ताप।



(श्रीमत दयानन्द विश्वविद्यालय  गुरुकुल चोटीपुरा की ब्रह्मचारिणियों के गाये भजन से। )

प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Wednesday, April 18, 2018

एक योगेश्वर कृष्ण दूसरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।


बनकर सूरज चाँद गगन में चमक रहे दो प्यारे नाम।
एक योगेश्वर कृष्ण दूसरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।

राम ने सेवा सत्य वचन और निर्भयता को धारा।
मानव की हर मर्यादा ने अपना रूप निखारा।
जिनको निज आदर्श मानकर गुण गावे संसार तमाम।
एक योगेश्वर कृष्ण दूसरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।


मात पिता की आज्ञा पाकर राम ने संकट झेले।
चौदह वर्ष वनो में रहकर हर मुश्किल से झेले।
त्याग तपस्या ब्रह्मचर्य से जीत लिए कितने संग्राम।
एक योगेश्वर कृष्ण दूसरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।




जीवन में महाराज कृष्ण ने अद्भुत बल दिखलाया।
दुष्ट जनों का इस धरती से नाम ओ निशान मिटाया।
मानवता  खिल उठी दिया जब गीता का पावन पैग़ाम।
एक योगेश्वर कृष्ण दूसरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।

नहीं मिला इतिहास कहीं पर कृष्ण सुदामा जैसा।
निर्धन और धनवान में जब दीवार बना नहीं पैसा।
भारत विश्व गुरु कहलाया हुए पथिक सुन्दर पैग़ाम।


प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Tuesday, April 10, 2018

कण्टक पथ अपनाना सीखें



कण्टक पथ अपनाना सीखें।
जियें देश के लिए देश हित तिल तिल कर मर जाना सीखें। 

राग रंग की नव तरंग में माँ की याद भुलाते आए।
भूल गए अपने वैभव को यश गौरव का गाते  आए।
अति माना का व्रत अपना कर बून्द बून्द ढल जाना सीखें। 

बढ़े चलें निज ध्येय बिंदु पथ जग का सुख ऐश्वर्य भुला कर।
दूर करें मन का अंधियारा निज जीवन का दीप जला कर। 
अडिग रहे जो झंझा में भी ऐसी ज्योति जगाना सीखें।
 
अपमानों की याद जगाकर सुनें करुण माता का क्रंदन।
कोटि कोटि कंठों से  गूंजे आज पुनः कल अंतर्दर्शन। 
जननी के पावन चरणों में जीवन पुष्प चढ़कर।

Monday, March 26, 2018

मेरी नैय्या है तेरे हवाले

डूबतों को बचा लेने वाले मेरी नैय्या है तेरे हवाले। 

लाख अपनों को मैंने पुकारा सब के सब कर गए हैं किनारा। 
और कोई न देता दिखाई सिर्फ़ तेरा ही अब तो सहारा। 
कौन तुझ बिन भंवर से निकाले। मेरी नैय्या है तेरे हवाले। 

जिस समय तू बचाने पे आवे आग में भी बचा कर दिखावे। 
जिस पर तेरी दया दृष्टि होवे कैसे उस पे कहीं आंच आवे। 
अँधियों में भी तू ही संभाले। मेरी नैय्या है तेरे हवाले। 

पृथ्वी सागर व पर्वत बनाये तूने धरती पे दरिया बहाये। 
चाँद सूरज करोंड़ों सितारे फूल आकाश में भी खिलाये। 
तेरे सब काम जग से निराले। मेरी नैय्या है तेरे हवाले। 

बिन तेरे चैन मिलता नहीं है फूल आशा का खिलता नहीं है। 
तेरी मर्ज़ी बिना तो जहाँ में पथिक पत्ता भी हिलता नहीं है। 
तेरे बस में अँधेरे उजाले। मेरी नैय्या है तेरे हवाले। 


प्रस्तुति 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

Thursday, March 15, 2018

हे ज्ञानवान भगवन

हे ज्ञानवान भगवन हमको भी ज्ञान दे दो।

करुणा के चार छींटे करुणानिधान दे दो।
हे ज्ञानवान भगवन हमको भी ज्ञान दे दो।

(सुलझा सकें हम अपने जीवन की उलझनों को)-2 । जीवन की उलझनों को।
प्रज्ञा ऋतम्भरा से बुद्धि का दान दे दो।

अपनी मदद हमेशा खुद आप कर सकें हम।  खुद आप कर सकें हम।
इन बाज़ुओं में शक्ति हे शक्तिमान दे दो। 

उपकार भावना से निर्भीक सत्य वाणी। निर्भीक सत्य वाणी। 
मीठे ही शब्द बोलें  ऐसी ज़बान दे दो। 

दाता तुम्हारे घर में किस चीज़ की कमी है। किस चीज़ की कमी है। 
चाहो तो निर्धनों को दौलत की खान दे दो। 

तुम देवता हो सबकी बिगड़ी बनाने वाले। बिगड़ी बनाने वाले। 
जीवन सफल बने जो थोड़ा सा ध्यान दे दो। 

डर है पथिक तुम्हारा रस्ता ना भूल जाएँ। रस्ता ना भूल जाएँ। 
भक्तों की मंडली में हमको भी स्थान दे दो। 

प्रस्तुति 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

Saturday, March 3, 2018

यज्ञ महिमा

होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से
जल्दी प्रसन्न होते हैं भगवान यज्ञ से।

ऋषियों ने ऊँचा माना है स्थान यज्ञ का
भगवान का ये यज्ञ है भगवान यज्ञ के।
जाता है देवलोक में इन्सान  यज्ञ से
जल्दी प्रसन्न-------------------------


जो कुछ भी डालो यज्ञ में खाते हैं अग्नि देव
एक एक के बदले सौ सौ दिलाते हैं अग्नि देव।
बादल बना के पानी भी बरसाते अग्नि देव
पैदा अनाज करते हैं भगवान यज्ञ से।

शक्ति व तेज यश भरा इस शुद्ध नाम में
पूजा है इसको कृष्ण ने भगवान राम ने।
होता है कन्या दान भी इसके ही सामने
मिलती है राज कीर्ति संतान यज्ञ से।

इसका पुजारी कोई पराजित नहीं होता
इसके पुजारी को कहीं भी भय नहीं होता।
होती हैं सारी मुश्किलें आसान यज्ञ से।
जल्दी प्रसन्न -----------------------

चाहे अमीर है चाहे कोई ग़रीब है
जो नित्य यज्ञ करता है वह खुश नसीब है
उपकारी मानव बनता है इस देव यज्ञ से
जल्दी प्रसन्न ------------------------

यूट्यूब पर सुनें - यज्ञ महिमा 

प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Monday, February 19, 2018

सारे अरमां पड़े के पड़े रह गए

डोली लेके पिया द्वार पर आ गए सारे अरमां पड़े के पड़े रह गए।
चार बतियाँ भी मैं उनसे कह ना सकी कहती तो तब मेरी जबान हिल ना सकी
मेरे मुंह में ताले पड़े के पड़े रह गए।

उनके आते ही पथरा गयीं पुतलियां रुक गईं दिल की धड़कन सभी नाड़ियां।
सारा संसार मानो अदृश्य हो गया मेरे नैना खुले के खुले रह गए।

मेरी फूलों से डोली सजाई गई उसपर अनोखी चदरिया उढ़ाई गयी।
टूटे रिश्ते नाते सभी प्यार के मोह ममता खड़े के खड़े रह गए।

खाली हाथ से संग में थी नेकी बड़ीमुझे महसूस होने लगी बेखुदी।
कपट स्वार्थ से जो भी दौलत कमाई वो ख़जाने पड़े के पड़े रह गए। 

मेरी चन्दन से सेज सजाई गयी उसपर दुल्हनिया सुलाई गयी।
लाख की ज़िन्दगी ख़ाक में मिल गयी और कुनबे खड़े के खड़े रह गए।

श्री जगराम सिंह ग्राम इस्माईलपुर, सेवा निवृत्त कर्मचारी (UPSRT निगम )
फ़ोन - 9457095285 


द्वारा
-ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

कैसे मनाऊं

मैं कैसे मनाऊं मेरे रूठे सँवरिया।

युवापन की मैली चदरिया विषयन दाग पड़ाई।
बिन धोये पिया रीझत नाहीं सेज से देत गिरायी।
सुमरन ध्यान का साबुन कर ले सत्य बात दरसाई।
पांच रुपये में घेर लई पाँच तत्व से भरी चुनरिया।

ये चुनरिया मेरे मायके\से आयी साथ दहेज़ में तीन गठरी भी लायी।
इस पर भी पिया खुश न हुए खोल दई सारी गठरिया।

सारा जग मैंने ढूंढ लिया।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों से पूछ लिया हार गयी और थक भी गयी।
तब मैं गुरु की शरण गई शरणागत ने मुझे बताया।
तेरे सँवरिया यहीं छिपे हैं, खोल ले अपनी दाग़ चुनरिया।

मेरी चुनरिया है नश्वर मृत्यु का ढेर है बिना ईश्वर।
इड़ा पिङ्गला सुषुम्ना श्रुति व निरुक्ति से जान लिया।
ॐ सोऽहं सब झंकार रहे अनहत बाजे बाज रहे।
अब तुम्हीं बताओ कहाँ छिपे हो मेरे सँवरिया।



श्री जगराम सिंह ग्राम इस्माईलपुर, सेवा निवृत्त कर्मचारी (UPSRT निगम )
फ़ोन - 9457095285 


द्वारा
-ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

ध्यान मार्ग

मेरे दिल की है ये आवाज़ कि मेरा बिछड़ा रूप मिलेगा।
आज नहीं तो कल मेरा सृजनहार मिलेगा।
सृजनहार मेरा बहुरंगी है चाल उसकी सतरंगी है।
इस चाल में बह कर के मुझे उसका दीदार मिलेगा।


अलख नाम एक ओंकारा है विश्व भू रचा जग सारा है।
काया कोट में रम रहा प्यारा शीशमहल में डेरा है।
शीशमहल में स्वामी दर से जहाँ प्रेम अमीरस बरसे।
निस दिन हरि का सुमिरन कीजे कह गए दास अमीरस पीजे।
शीश महल के दस दरवाज़े कौन दरवाज़े से मेरा दिलदार मिलेगा।



तुम्हारा रूप रेख कुछ नाहीं अजपा रूप मन भाया।
ह्रदय कमल में ज्योति तुम्हारी अनहत नाद वेद दरसाया।
ॐ सोऽहं के मध्य में रहते अँधा जगत देख नहीं पाया।
इड़ा पिङ्गला सुषुम्ना श्रुति निरुक्ति से राह लखाया।
सहज शून्य में वास तुम्हारा घट पिंड में ब्रह्माण्ड तुम्हारा।
ॐ सोऽहं के मध्य में तेरा एक नूर मिलेगा।

हृदय आकाश में आप विराजा रची सृष्टि प्रजा और राजा।
अगम अगोचर प्रभु सब ठाई सूक्ष्म नेत्र से देह दिखाई।
क्या पढ़ना क्या गुनना कीजे समझ बूझ ध्यान नित दीजे।
क्या वेद पुरान लखाना शुन्य शिखर पर देओ ध्याना।
ध्यान मार्ग पर चल करके मुझे अपना ही रूप मिलेगा।


श्री जगराम सिंह ग्राम इस्माईलपुर, सेवा निवृत्त कर्मचारी (UPSRT निगम )
फ़ोन - 9457095285 


द्वारा
-ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Friday, February 16, 2018

यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां

ॐ अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजं होतारं रत्नधातमं। 


दीपक पर जलने का मज़ा ये दीपक के परवाने से पूछ।
और क्या मज़ा ईश्वर भक्ति में है ये ईश्वर के दीवाने से पूछ।
कौन कहता है कि मुलाक़ात नहीं होती है।
रोज़ मिलते हैं मगर कभी बात नहीं होती।

बंदा होके न बंदियां कमा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।
खोटे  कर्मों के पास न जा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।

हीरा सा जन्म तुझे जिस ने भी दिया है एक भी छदाम नहीं बदले में लिया है
कधी उसका भी शुकर  मना यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।

धरती पे फूल भी खिलाये तेरे वास्ते मधुर मधुर फल लगाए तेरे वास्ते।
बीरा मुर्गी न मार मार खा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।

नीला नीला नीर भी बहाया तेरे वास्ते नभ को सितारों से सजाया तेरे वास्ते।
गन्दी नालियों में मत ना नहा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।


तान सुरीली तेरे कंठ में लगाई है कोयल सी आवाज़ तूने बेमोल पायी है।
गंदे गीत न बीर कभी गा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।


(आर्यसमाज के भजनों से)

प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

Wednesday, February 14, 2018

ओ सुप्रीम पावर गोड!

ओ सुप्रीम पावर गोड!


परमात्मा सदा अदृश्य है,
वह है लेकिन अदृष्ट है ।
कोई भी सूक्ष्मदर्शी आत्मा  को ही नहीं देख सकता ,
तो फिर परमात्मा को देखना कैसे सम्भव है?

वह है वायुवत, आकाशवत।
जिसे अनुभव तो हैं कर सकते पर देख नहीं सकते।
जानते उसे हैं  समाधिस्थ बुद्धि से।
यही तथ्य है मेरा मत ।

उसकी प्रतिमा बन नहीं सकती ।
न वह मानव रूप में कभी जन्म लेता।
वह अपने समस्त काम पूरे खुद है कर सकता,
जैसे रावण या कंस को मारना,
बिना जन्म लिए या मृत्यु को पाए
क्योंकि वह है सर्वशक्तिमान।


आदरणीय मैं आपको हूँ प्रेम करता।
आप माँ  दुर्गा हो, आप माँ काली हो,
आप पिता राम हो, आप पिता कृष्ण हो,
आप पिता शिव हो, आप पिता ब्रह्मा हो।

भगवान कृष्ण , भगवान राम, भगवान् ब्रह्मा, भगवान् शिव,
और मेरे गुरु थे बहुत ही ऊँचे लेकिन,
तुम राम हो क्योंकि हो सर्वव्यापी।
तुम कृष्ण हो क्योंकि  हो महायोगी ।
तुम ब्रह्मा हो क्योंकि तुमने है ब्रह्माण्ड बनाया ।
आपका मुख्य निज नाम ॐ है क्योंकि आप हमारे लिए हो करते सब कुछ।

ओ प्यारे पिता मैं आपको हूँ प्रेम करता ।
मैं हूँ लेना चाहता आपके कुछ गुण ।
और मैं प्राप्त कर लूँगा निश्चित
यदि चाहो आप,
वरन  कोई भी मेरी मदद नहीं कर सकता
यदि चाहो नहीं आप ।
मेरा है नहीं कोई
क्योंकि आप चाहते हो ऐसा ही ।

परन्तु पृथ्वी मेरी है।
अग्नि मेरी है।
वायु  मेरी है।
आकाश मेरा है।
जल मेरा है।
जो मैं माँगूँगा आपसे मिलेगा मुझे , मैं जानता  हूँ।

ओ प्यारे पिता!
ओ महानतम कवि! जिसने सबसे बड़ी कविता वेद है बनाया,
मैं भी एक छोटा कवि बनना हूँ चाहता।
मैं जानता हूँ कि आप सब कुछ हैं समझते जो मैं चाहता हूँ!
इसलिए कृपया मुझे वो सब दो,
जो मेरी हैं आवश्यकताएँ।
परन्तु मुझे ऐसा बना देना प्रभु!
कि मुझे अवसर मिले ही नहीं,
कोई बुरा कर्म करने का !

यूट्यूब पर सुनें - ओ सुप्रीम पावर गॉड 

Read its English Translation

आपका
भवानंद आर्य "अनुभव"

Awaking our Destiny, Bharat is now Awaking

Awaking our Destiny, Bharat is now Awaking

Yoga, Yajna and Prayers for God is Being performed
Again prosperity, Wealth, Knowledge as well is being rained

Religion, Prosperity and Desires, Salvation we desire
We are everything, Everything we acquire
Ignorance, Darkness, bad luck and Sorrow are infinitely waiting

Awaking our Destiny, Bharat is now Awaking

Internal Power is Waking Up, with Strength body has filled
With adding Spirituality to Science We are pleased and thrilled
Let We be with instruments or without, the Love is enrolled
Our heart is singing with the grace God duly filled

Awaking our Destiny, Bharat is now Awaking

Let us together chant the god's song
After removing enmity Move to God's lap
Let the country again become Teacher of the world
The national religions must become Vaidic with no excuse in every nation
Vaidic Chanting, One Culture, Politeness and Punishment must we have
O Celibacy Observer! Identify your Vishnu incarnation

Awaking our Destiny, Bharat is now Awaking

(Selfmade)




Truly
Brahmchari Anubhav Sharma Arya 'Bhawanand'