Wednesday, November 22, 2017

समय सारिणी

 

३:३०                      :           जागरण, नित्य कर्म 
४:००-४:०५            :           प्रातः कालीन मन्त्र 
४:०५-४:३५           :           अध्ययन 
४:३५-४:५०           :           स्नान 
४:५०-५:२५           :           योग, ध्यान
४:२५-५:४५           :           जप 
५:४५ -६:००           :           गृह शुद्धि 
६:००-६:३०              :           संध्या,  स्तुति   
६:३० -७:३०            :           ---- 
७:३०-८:३०             :           बैच 
८:३०-१०:००            :           कम्प्यूटर शॉप
१०:००-१:००             :           विविधा 
१:००                        :           भोजन व विश्राम 
२:३०-३:३०              :          ----
३:३०-४:००              :          बैच 
४:०० -५:००             :          बैच 
५:०० -६:००             :          बैच
६:०० -७:००             :          बैच
७:००-८:००              :          ---- 
८:००-९:००               :          ----
९:००-९:३०               :          अध्ययन 


अनुभव शर्मा 

चन्द्र विज्ञान व सूर्य विज्ञान

ॐ 
चन्द्र विज्ञान व सूर्य विज्ञान 



भाइयों व बहनों! हम निम्नलिखित रसायन विज्ञान की समीकरण को ज़रा गौर से देखें -



                             Sun Light, Chlorophyll
6CO2 + 6H2O          ------------------->            C6H12O6 + 6O2



इस समीकरण के अनुसार ही हरे पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड और जल की मदद से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पत्तियों के द्वारा भोजन (ग्लूकोज़ ) का निर्माण करते हैं। 
परन्तु सूर्य विज्ञान से सम्बंधित यह बात कि सूर्य की किरणों से पौधों में भोजन का निर्माण होता है और यही भोजन अन्य जीवधारियों के भी काम आता है, ही आज कल ज्ञात एक मात्र मत है जो कि फल, फूल, सब्जियों आदि भोजन बनाने में सहायक माना जाता है। 

अर्थात सभी प्राणियों के भोजन का प्रबंध प्रकाश संश्लेषण नाम की इस प्रक्रिया मात्र से ही पौधों व वृक्षों के द्वारा किया जाता है।  यह ही एक मात्र ज्ञात तथ्य हमारे सामने आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत किया है। 

परन्तु आपको जानकर अति हर्ष होगा कि हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों व ऋषियों ने चन्द्रमा के प्रकाश से सम्बंधित चंद्र किरणों का विज्ञान भी प्रकट किया है जो कि फल आदि के पकने व उनके निर्माण में अत्यधिक लाभदायक है। 

उन्होंने यह तथ्य (नियम) निर्देशित किया है कि सूर्य फलों के रस को खैंचता है, अवशोषित किया करता है।  और चन्द्रमा रात्रि में फलों में रस को भरण करता है। इसी रसों के खींचने और भरण करने की प्रक्रिया के द्वारा ही फलों के अंदर पकने (maturity) की प्रक्रिया होती है। 

चन्द्रमा की किरणों में शीतलता प्रधान होती है और सूर्य की किरणों में उष्णता। यह ही गुण इन आकाशीय पिण्डों के द्वारा पृथ्वी पर भोजन निर्माण में सहायक होता है। 



आपका 
अनुभव शर्मा 

Tuesday, November 21, 2017

सुखी कोई परिवार नहीं।

परमपिता से प्यार नहीं और शुद्ध रहे व्यवहार नहीं।
इसीलिए तो आज देखलो सुखी कोई परिवार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।

अन्न, फूल, फल, मेवाओं को समय समय पर देता।
लेकिन है आश्चर्य यहीं कि बदले में कुछ नहीं लेता।
करता है इंकार नहीं, भेदभाव तक़रार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।


मानव चोले में न जाने कितने यन्त्र लगाये हैं।
क़ीमत कोई माप सका न, ऐसे अमूल्य बनाये हैं।
कोई अंग बेकार नहीं, पा सकता कोई पार नहीं।
ऐसे कारीगर का बन्दे करता ज़रा विचार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।


जल, वायु और अग्नि का वो लेता नहीं किराया है।
सर्दी, गर्मी, ऋतु बसन्त का सुन्दर चक्र चलाया है।
लगा कहीं दरबार नहीं, कोई सिपा सालार नहीं।
कर्मों का फल देता बराबर रिश्वत की सरकार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।


सूर्य, चाँद, तारों का न जाने, कहाँ बिजलीघर बना हुआ।
पल भर को धोखा नहीं देते कहाँ पे तार जुड़ा हुआ।
खम्भा है न कोई तार नहीं, खड़ी कोई दीवार नहीं।
ऐसे शिल्प कार  का रे तू बन्दे, करता ज़रा विचार नहीं।

(भजन ९९, भक्ति गीतांजलि, आचार्य बालकृष्ण जी, दिव्य प्रकाशन )


प्रस्तुत कर्ता
अनुभव शर्मा

(भजन ९९, भक्ति गीतांजलि, आचार्य बालकृष्ण जी, दिव्य प्रकाशन )

Monday, November 20, 2017

राम चंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलियुग आयेगा

हे जी रे हे जी रे हे जी रे 

राम चंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलियुग आयेगा हंस चुगेगा दाना गुनका कव्वा मोती खायेगा। हे जी रे हे जी रे। 

सिया ने पूछा, "भगवन कलियुग में धर्म करम को कोई नहीं मानेगा?",  तो प्रभु बोले-

धरम भी होगा करम भी होगा, परन्तु शर्म नहीं होगी, बात बात में मात पिता को बेटा आँख दिखायेगा। हे राम चंद्र कह गए सिया से। 

राजा और प्रजा दोनों में होगी निसिदिन खींचा तानी, खींचा तानी, क़दम क़दम पर करेंगे दोनों अपनी अपनी मनमानी, मनमानी, जिस के हाथ में होगी लाठी, भैंस वहीँ ले जायेगा। 
हंस चुगेगा दाना गुनका कव्वा मोती खायेगा। हे राम चंद्र कह गए सिया से। 

सुनो सिया कलजुग में काला धन और काले मन होंगे, काले मन होंगे। चोर उचक्के नगर सेठ, और प्रभु भक्त निर्धन होंगे, निर्धन होंगे।  जो होगा लोभी  और भोगी वो जोगी कहलायेगा। हंस चुगेगा दाना गुनका कव्वा मोती खायेगा। हे राम चंद्र कह गए सिया से। 


मंदिर सूना सूना होगा भरी रहेंगी मधुशाला, मधुशाला।  पिता के संग संग  भरी सभा में नाचेगी घर की बाला, घर की बाला।  कैसा कन्या दान पिता ही कन्या का धन खायेगा। हंस चुगेगा दाना गुनका कव्वा मोती खायेगा। हे राम चंद्र कह गए सिया से। 

हे मूरख की प्रीत बुरी जुए की जीत  बुरी,बुरे संग बैठ चैन भागे ही भागे। काजल की कोठरी में कैसा ही जतन करो काजल का दाग भाई लागे ही लागे, काजल का दाग भाई लागे ही लगे। 

हे कितना जती हो कोई कितना सती हो कोई कामिनी के संग काम जागे ही जागे। हो सुनो कहे गोपीराम जिसका है काम नाम उसका तो फंद गले लागे ही लागे रे भाई उसका तो फंद गले लागे ही लागे। 


प्रस्तुत कर्त्ता -

आपका अपना 
अनुभव शर्मा 

Friday, November 17, 2017

जैसे सूरज की गर्मी से

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया। 
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी आया मेरे राम। 


भटका हुआ मेरा मन था कोई मिल न रहा था सहारा। 
लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे, मिल न रहा हो किनारा। 
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया। 
ऐसा ही सुख मेरे मन को ----------------------------------


शीतल बने आग चन्दन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी। 
उजियाली पूनम की बन जाएँ रातें जो थीं अमावस अँधेरी। 
युग युग से प्यासी मारभूमि ने, जैसे सावन का सन्देश पाया। 
ऐसा ही सुख मेरे मन को ----------------------------------


जिस राह की मंज़िल तेरा मिलान हो, उस पर क़दम मैं बढ़ाऊँ। 
फूलों में खारों में पतझड़ बहारों में  मैं न कभी डगमगाऊं। 
पानी के प्यासे को तक़दीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया। 
ऐसा ही सुख मेरे मन को ----------------------------------



भजन  १२७ : भक्ति गीतांजलि, आचार्य बालकृष्ण जी, दिव्य प्रकाशन, हरिद्वार 


[नोट: 'रमेति रामः' - जो परमात्मा कण कण में बसा हुआ है उसे राम कहते हैं। और एक राम लगभग साढ़े आठ लाख वर्ष पूर्व हुए दशरथ नंदन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र जी।  जिन्होंने अपने जीवन में एक भी पाप नहीं किया अतः भगवान् राम के नाम से जाने जाते  हैं। ]

भजन जनम सफल होगा रे बन्दे

बोलो राम जय जय राम बोलो  राम। 
बोलो राम जय जय राम बोलो राम।टेक।


जनम सफल होगा रे बन्दे। मन में राम बसा ले। मन में राम बसा ले। 
राम नाम के मोती को सांसों की माला बना ले। मन में राम बसा ले। 

राम पतित पावन करुणाकर और सदा सुखदाता। 
सरस सुभावन अति मन भावन राम से प्रीत लगा ले। 
मन में राम बसा ले। 
बोलो राम जय जय राम बोलो राम। 


मोह माया झूंठा बंधन त्याग उसे ऐ प्राणी। 
बोलो राम जय जय राम बोलो राम। 
राम नाम की ज्योत जलाकर अपना भाग्य जगा ले। 
मन में राम बसा ले। 


राम भजन में डूब के अपनी निर्मल कर ले काया। 
राम भजन से प्रीत लगा के जीवन पार लगा ले। 
मन में राम बसा ले।  
बोलो राम जय जय राम बोलो राम। 
बोलो राम जय जय राम बोलो राम। 






[नोट: 'रमेति रामः' - जो परमात्मा कण कण में बसा हुआ है उसे राम कहते हैं। और एक राम लगभग साढ़े आठ लाख वर्ष पूर्व हुए दशरथ नंदन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र जी।  जिन्होंने अपने जीवन में एक भी पाप नहीं किया अतः भगवान् राम के नाम से जाने जाते  हैं। ]


प्रस्तुतकर्ता 

आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

Tuesday, November 14, 2017

बैरक १४ - ए

कुछ मुख्य व्यक्ति 
बैरक १४ - ए  पर एक कविता


सन २०१४ अक्टूबर में मेरे ऊपर चार तीन मुक़दमे (झूंठे ) स्व पत्नी के द्वारा डाल दिए जाने के कारण  मुझको जेल जाना पड़ा था। वहाँ की यादें मुझे झकझोर देती हैं।  मैंने वहाँ लेखन कार्य किया था और कुछ कवितायेँ भी बनाई थीं।  उनमे से एक प्रस्तुत है - (कृपया यदि पसंद आये तो कमेंट करना न भूलें )-



यहाँ हैं पंडित पूरे  पाँच। 
विपिन, अरुण, नीरज, गौरव और मैं। 
सब ही बैरक के रखवारे हैं। 
नहीं ये जातिवाद, झगडे के पोषक। 
ऊँची शिक्षा वाले हैं। 


[विपिन पाण्डेय ]
कुशल गणित विद्या में हैं राईटर 
पंडित जगन्नाथ महाराज 
जिन्हें देख सुन शान्त हो जाते बंदी 
ऐसी फितरत वाले हैं। 
शांत, प्रसन्न व कुशल चंद्र सम 
ऊँची क़िस्मत वाले हैं। 
प्रिय, मधुर, तीखी, मधुर वाणी 
सब ही मुख में धारे हैं। 


[करतार सिंह ]
एक हैं नेता जी करतार 
कुशल वचन भाषण में उनके 
है उनकी माया अपरम्पार 
सिंह समान गरजे हैं अबके 
मंच हो, सभा हो या हो बंदी स्थल 
शुद्ध श्वेत परिधान भारतीय 
टोपी, बण्डी सब उनकी शान 
है स्वदेशी, स्वदेश तथा भारतीयता की पहचान 
प्रशंसा सदगुणी व्यक्ति की करना है 
उनकी वाणी में विद्यमान 
बांटना, सत्कार करना व मग्न रहना 
उनके ये गुण निश्चित ही हैं महान 


[सोमपाल सिंह चौधरी ]
सुबह सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में 
नित्य ही जाग जाते हैं। 
साधु सामान व्यवहार है जिनका 
चौधरी सोमपाल कहलाते हैं। 
दुष्टता, दुर्व्यसन, दूरिता से दूर 
प्रभु भक्ति के नशे में चूर 
सम्भला हुआ कर्म है जिनका 
ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी को चाहने वाले हैं। 

 [अनुभव शर्मा ]
कुछ प्रभु भक्त, कुछ दुनिया भक्त 
कुछ वैराग्यवान, कुछ कामवान 
कुछ पढ़ा लिखा, कुछ उन्मादी 
पर हूँ परेशान इस झूठी दुनिया से 
पर सच का मै रखवारा  हूँ। 
गुरुओं, माला, प्रभु और बालियों से डरने वाला हूँ। 
मैं भवानन्द शर्मा अनुभव 
सारे कारागार का प्यारा हूँ। 
मैं छोटी क़िस्मत वाला हूँ। 
पर यज्ञ देव का प्यारा हूँ। 

[नीरज शर्मा]
धन, वैभव, कीर्ति जिसके घर 
ऐसी क़िस्मत वाले हैं। 
वशिष्ठ गोत्र के स्वामी जो हैं 
नीरज शर्मा प्यारे हैं। 
गुण अनेक और अवगुण एक 
धैर्य, सहनशीलता मन में धारे हैं। 


[नैन सिंह]
डॉक्टर नैन सिंह बाष्टा वाले। 
हैं अधिकतम सदगुणों के रखवाले। 
नाश, क्रोध व व्यर्थ की बातों। 
में न उनका ध्यान, बनेंगे अत्युत्तम इंसान 
करेंगे परिवार, ग्राम, प्रदेश व देश का। 
योग व अध्यात्म से तथा बीमारों के इलाज से। 
अत्यधिक उत्थान। 

[अरुण शर्मा]
वाणी से कटु बहुत हैं भाई। 
दिल से हैं दुखी, और अत्यधिक परेशां 
कानून, समाज व परिवार से है इनको कुछ शिकायत भी 
मगर करते हैं पुरुषार्थ, सेवा तथा रखते है। 
महापुरुष, वेद, गीता में श्रद्धा अति महान 
ये भी हैं देश की अमर संतान। 



[मौ० साबिर पहलवान]
अल्लाह के बन्दे, प्रेमी, परोपकारी व बलवान 
नहीं हैं लेते रोज प्रभु का नाम, मगर 
जुम्मे की नमाज़, नहीं छोड़ते साबिर पहलवान।
याद है इनको हर गुर परोपकार का
करते हैं नए लोगों से पहचान और
दया दान नम्रता की मूरत
जैसे कोई अल्लाह की अच्छी संतान।


[जगराम सिंह सैनी ]
सैनी समाज से हैं भाई जगराम
अच्छाई, भक्ति, निर्देशन व सुविचार।
सब हैं इनकी अपनी ही पहचान।
याद सभी हैं सभी युक्तियाँ तथा विचार
दे सकते हैं अपनत्व व देश की खातिर
ये, अपनी जान, मगर जीवन है वीरान
कानून अंध के पंजे से हैं ये भी परेशान
प्रभु बचाये इनको, परिवार को, यहीं है मेरी तान। 


योग, सदाचार, पुरुषार्थ और कर्त्तव्य 
सब ही गुण ये न्यारे अति प्यारे हैं 
उपासना, कर्म, ज्ञान और  
सब अपने रखवारे हैं साइंस 
और मुक्ति को देने वाले हैं। 
इसलिए दिल में सब हमने, तुमने और उन्होंने उतारे हैं, रहे हैं और 
उतारेंगे 
निस्संदेह 
अवश्य। 



भाइयो बहनों इस प्रकार साम नीति के प्रयोग से हम अपराधियों को भी वश में कर सकते हैं, और उनको सन्मार्ग पर लाकर वास्तविक देशभक्त नागरिक के रूप में सुधार लाने में सफल हो सकते हैं। 



आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 
(१-२-२०१५ को जेल बिजनौर में लिखी )