Sunday, September 28, 2014

माँ दुर्गे

ॐ 
माँ तेरे हाथ में शंख ये क्यूँ है?
तू चाहती है कि वेद ध्वनि हो मेरे राष्ट्र में।
माँ तेरे हाथ में चक्र ये क्यूँ है?
तू चाहती है कि एक संस्कृति हो मेरे राष्ट्र में।
माँ तेरे हाथ में पद्म ये क्यूँ है?
तू चाहती है कि शिष्टाचार हो मेरे राष्ट्र में।
और चाहती है कि सदाचार हो मेरे राष्ट्र में।
माँ तेरे हाथ में गदा ये क्यूँ है?
तू चाहती है कि दंड विधान हो मेरे राष्ट्र में।
माँ तेरे हाथ में धनुष ये क्यूँ है वाण ये क्यूँ है।
तू चाहती है कि यन्त्र हों वैज्ञानिकों के यहाँ पर मेरे राष्ट्र में।
माँ तेरे हाथ में त्रिशूल ये क्यूँ है?
तू चाहती है कि त्रिविध ताप से बचने के प्रयास हों इस मेरे राष्ट्र में।
और चाहती है कि सब के सब सुखी हो जाएँ मेरे राष्ट्र में।
माँ तेरे हाथ में खड्क ये क्यूँ है?
माँ तेरे हाथ में तलवार ये दुधारी क्यूँ है?
तू चाहती है कि प्रगति हो भौतिक यंत्रों की मेरे राष्ट्र में।
पर चाहती है की भूल न जाएँ आध्यात्मिकता को भक्त सभी।
तू चाहती है कि दो धारें हों इस मेरे राष्ट्र में
और ये धारें हैं भौतिक व आध्यात्मिक वाद की, तो दोनों हों।
क्यूंकि एक धार से तलवार बन नहीं सकती, भक्त मेरे।
माँ तेरा ये प्रथम हाथ यूँ खाली क्यूँ है?
तुझे आशीर्वाद देती हूँ भक्त मेरे।
और कहती हूँ तुझ जैसा प्रिय कोई और नहीं।
ये ज्ञान कहाँ से ले आया ऐ भक्त मेरे
बताना तू इसे नहीं किसी को भी ऐ पुत्र मेरे।







(स्वरचित)
आपका अपना 
भवानन्द आर्य 'अनुभव शर्मा आर्य'

4 comments:

  1. bhaiya ji kya kahane apne to kamal ka poem likha hai maa bhagwati ko lekar ,vari jayu,ma apko sada sukhi rakkhe.

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  2. Very sweet poem heartily touchable. .

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  3. Dhanyawaad Silajit Ray Ji, For Complement. Thanks Alot.

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  4. Dhanyawaad Bro for Complements. It is the grace of the god himself that I could write too much sweet.

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