सुविचार
*सुबह उठते ही एक गिलास पानी (जाड़ों में गर्म व गर्मियों में ताज़ा ) जल्दी जल्दी पियें। यह अमृत तुल्य है तथा इसे उषा पान कहते हैं। भोजन से पूर्व का जल अमृत, बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा जल जल व भोजन के तुरन्त बाद जल विष के तुल्य है। भोजन के कम से कम आधा घंटा बाद ही जल पिएं। (रामदेव बाबा , चाणक्य नीति एवं ऋग्वेद )
Take one glass of water
(Little hot in Winter and Fresh water in Summer) when you just wake up
in the morning. It is just like nectar and it is called 'Ushah Paan' or
Morning Drink. Water before the meal is just like nectar, Water in between the food with a little quantity is called water and water just after the meal is just like poison. Drink the water after half an hour after taking meal. (Swami Ramdev Baba, Chanakya Neeti and Rigveda)
*दान के समान अन्य कोई सुहृद नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है। शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है- (विदुर नीति )
No one intimate friend is there except Donation and no one enemy is there except Greed on Earth. Nothing is more costly ornament than Celibacy and nothing is greater Wealth than Patience. - (Vidur Neethi)
*तप कहते हैं अपनी इंद्रियों को तपाना और जो हमारे ह्रदय में दूषित संस्कारों का जन्म हो गया है उन दूषित संस्कारों को नष्ट करना तप और स्वाध्याय के द्वारा व इंद्रियों को जय करने के द्वारा हम इंद्रियों के दूषित संस्कारों को नष्ट कर दें। और ओर सुन्दर संस्कारों को जन्म देने का नाम तप कहा जाता है - (भगवान राम )
Penance is called to destroy the ill impressions that are appeared in our heart. Destroy those impressions by Penance, Studying Arya Litereature and by controlling our sense and working organs. And to produce good impressions is called the Penance- (Lord Ram)
जब तक तुम्हारी इंद्रियों में अज्ञान है तुम्हारे मन मस्तिष्क मे अज्ञान है तब तक तुम मृत्यु से पार नहीं हो सकते और बिना मृत्यु से पार हुवे तुम्हारा जीवन सार्थक नहीं बनेगा।
इंद्रियों को नियमित करना ही तप है तथा बिना तप के अज्ञान नष्ट नहीं हो सकता - (ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी, पूर्व श्रृंगी ऋषि)
while your sense organs have ignorance, your brain and thinking power, mind have ignorance, you are not able to cross the death; and without crossing the death your life is not successful.
To control your sense organs is called Penance and without penance the ignorance can not be destroyed- (Br. Krishna Dutt Ji, Earlier Shringi Rishi)
जो व्यक्ति विद्वान, अध्यापक, ब्राह्मणों व ऋषि मुनियों के धन को हरता है या उनके क्रोध का पात्र बनता है उसका विनाश काल निकट है यह निश्चित जानो।
Who snatches the wealth and money of scholars, teachers, Brahmins or Saints and sages, or become the object of their anger, his/her ruin is near, it is sure.
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