Thursday, May 15, 2014

मोह भंग

हमें मोह भी हो गया , मोह भंग भी हो गया।
पता नहीं उसे क्यूँ नहीं पता जिससे हुआ।
ये ही तो है अज्ञान पर मैं खुश हूँ  बहुत।
क्यूंकि वो हंसी फिर लौट आई।
जो थी मेरी पहचान, हँसता है कब इंसान।
जब अपनाता है दुनियां के दर्द को।
ठुकराता नहीं अपनों के फ़र्ज़ को।
अब तो सारी दुनियां ही अपनी लगने लगी यारों।
क्यूंकि जब छोड़ देते हैं सब को।
तो सब अपने लगते हैं , यही है दुनियां की रीत।
इसलिए प्यारे करो जग से प्रीत।



आपका
अनुभव शर्मा

No comments:

Post a Comment