Tuesday, February 10, 2015

ये जेल है

अपमान रूपी अमृत की ये खान है ये जेल है। 
धारा ३७६, ३०२, ३९६ भी खूब हैं ये जेल है 
४९८, ४०६, ३२३ व ६०५ के मुर्गे खूब हैं ये जेल है। 
चार सौ बीसी, चोरी, लूट, डकैती ये श्राप हैं ये जेल है 

कुछ कर कर के हैं पछता रहे, कुछ करने को मजबूर हैं। 
कुछ झूठ के बल आ फंसे कुछ जानबूझ लाचार हैं 
पर कर रहे सब कर्म हैं छोड़ा कुछों ने धर्म है 
बेकार थे या बेकार हैं नादान थे या नादान हैं 
पर शुक्र है कि वो नहीं अनुचान हैं ये जेल है  . 

कुछ दोष अपने अपनों का था कुछ दोषी अभी क़ानून है 
ये थे तो सारे अंग्रेजी ही पर अब भी कुछ तो हैं वहीँ 
संख्या में चौतीस हजार(३४७३५) हैं लन्दन की यादगार हैं 
महारानी विक्टोरिया जी की ही शान हैं ये जेल है  . 

पर चुप रहो ये जेल है जोड़ा बना कर के चलो ये जेल है 
आदरणीय जेलर सर, डिप्टी सर, चीफ सर व हेड सर 
सब के सब नाराज़ हैं क्यूंकि ये जेल है 
पर हम से क्यों नाराज़ हैं हम ने कर दिया ऐसा क्या पाप है

कहते थे एक साहब हैं कि हर तरह का कर्म हो
जो आता न हो तुमको भाई ऐसा नहीं कोई कर्म हो
पर कर्म वो सत्कर्म हो ये नहीं कि दुष्कर्म हो
पर अनुभव तू तो टीचर हैं फिर बन गया क्यों प्रीचर हैं
क्या करें हम भाइयों जब अपनों ने ठुकरा दिया
तभी तो कोई दूसरा है हमको अपना बना गया।

करता हूँ नम्र निवेदन मैं अरे इस भारतीय सरकार से
तब एक (फूट डालो) थे अब चार (साम , दाम, दण्ड , भेद) हैं
फिर क़ानून क्यों नहीं चेंज है
क़ानून कुछ अंग्रेजी थे स्वतन्त्र भारत के
और अब भी नहीं कोई चेंज हैं नहीं चेंज हैं

भूमि अधिग्रहण का क़ानून, मौजूद था मौजूद है
जब जनरल डायर ने डायरेक्ट किया सिपाहियों को
तो उनकी वर्दी खाकी थी तो अब भी रंग क्यों सेम है
हम आज़ाद हैं और यहाँ पर लोकतंत्र है
तो क्यों नहीं है अधिकार साधारण मानव को
बोलने का, अपनी बात, स्वतंत्रता से, क्यूं ये भ्रष्टाचार है

क्यों मंदिर मस्जिद का विवाद है
क्यों नहीं बेटी हमारी सेफ हैं
क्यों नहीं अब भी हम स्वतंत्र हैं
जबकि, कहते हैं, देश ये हमारा प्रजा का ही तंत्र हैं।

क्यों नहीं बराबरी का अधिकार है
क्यों नहीं धन का वितरण सामान है
क्यों ये बेरोज़गारी है
जबकि नीतियां हिंदुस्तानी हैं

कारण मैं बताऊंगा
परेशान हैं, बेटियां परेशान हैं
कहते हैं - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
सो ये मेरा प्यारा हिन्द
आज भी ग़ुलाम है

संभल जाओ देशवासियों
बनवाओ एक क़ानून
जिसमे हो अधिकार एक नारी को
उसकी रक्षा का, उसकी आजीवन सुरक्षा का
तो बंद होगा ये अत्याचार
इन भगिनियों, पुत्रियों और माताओं पर

नम्र ये निवेदन करता हूँ मैं
मौत से लड़ सकता हु मैं
आहुति शरीर की भी दे सकता हूँ मैं
क्यूंकि मैं हूँ भक्त
मान दुर्गा का, यज्ञ भगवा न का
मैं पुजारी हूँ अमन का, गुरु का, शांति का
और शिव भगवान का
मैं मुर्ख था, मुर्ख हूँ पर
क़ानून बनना श्योर  हैं
क्यूंकि दिल हमारा प्योर है
कविता में भी ज़ोर है
और आज जनता में शोर है

मैं मुर्ख हूँ पर दिल से मैं अपूर्व  हूँ
दे श मांगता उत्कर्ष है
और मांगता युवराज है
क्यूंकि अब भी ये देवों का अंग देवांग है
ये टैगोर की गीतांजलि है
ये चारू  चन्द्र की चित्रावली है
ये श्रुतियों की खान है
रहती स्मृति परेशान है

नैना देवी हमारी जान है
अनुकृति की ये आकृति है
हृदयों का ये अंश है
चल रहा यहाँ आर्यों का ही वंश है

हमें देश से अनुराग हो
हर प्राणी यहाँ योगेश हो
हर भाल पर यहाँ चन्द्र हो
जनता जनार्दन का ही मन्त्र हो
सब लोगों में सदाचार हो
और अनुभव देश का आधार हो

जेलों में हमारे देश की धरोहर हैं
नहीं केवल पाप करने वाले सभी बंदी हैं
तू तो झूठे विवाद में फँस गया ऐ दोस्त
वरना क़ानून तो अभी अंध हैं
करना व्यभिचार, पाप, झूठ व दुराचार बंद है
तो सत्यनिष्ठ, सदाचारी , कर्तव्यवादी संविधान हो
पुलिस थाने की कार्यवाही भी निष्पाॅप हो।


(स्वरचित )
अनुभव शर्मा आर्य 'भवानन्द आर्य'

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