Friday, May 4, 2018

ॐ नाम निर्गुण की वाणी

सन्तों आओ जी राह में मिलेंगे बड़े सरकार(ईश्वर)।
ॐ नाम निर्गुण की वाणी शब्द है उसकी पेशानी।
वेद पुराण उसका पता बतावें समझे विरला ब्रह्म ज्ञानी।
समझ समझ कर मुक्ति पाए काल पास के बीच न आये।
वह शमाँ है परवाना मैं हूँ एक अलमस्त दीवाना।
अब मुझको आया होश इसमें ना है कुछ उनका दोष।
मैं लुट गया रे मैं मर गया रे अपने कर्मों की मार।

मेष विश्वम्भर तप व्रतधारी जो जुगत और भोग भुगतारी।
आया मुझ में चल आया  संतोष दया उर धारे काम क्रोध मद लोभ गए।
भ्रम का बहुत भगाया रे, ब्रह्मस्वरूप परम तप धारी डूबे जीव को भवपारी।
ज्ञान अगम का लाया रे उसने मेरे कष्ट निहारे सुनकर मेरी पुकार।
ताल बेल जब घर में लागी बह नैन से नीर पड़े पर मुझे सतगुरु मिल गए।
चली न कोई तदबीर यह कमान गुरु कसके मारी शब्द सुरगगी तीर।
हीरा ले गए ऐसा अद्भुत तीर मेरे गुरु की शब्द निशानी।
शब्द में है रे संसार।
राम रूप से रावण मारा कृष्ण रूप से कंस पछाड़ा।
हिरण्यकश्यपु को बलि बनाया सारा जग दहलाया।
भक्त प्रहलाद की रक्षा हेतु नर सिंह रूप बनाया।
तेरी महिमा अजब निराली तेरी महिमा अपरम्पारी।
गोपियों (वेद की ऋचाएं) संग रास रचाई गीता में उपदेश दिए बन के कृष्ण मुरारी।
तुमतो हो वामन रूप रमिया सारे जग के हो रखिया।
अब इस जगजीव का कर दो बेडा पार।


संग्रहकर्ता
जगराम सिंह 
अध्यक्ष , आर ० आर ० मॉडर्न पब्लिक स्कूल, काजीसोरा 

निवासी ग्राम इस्माईलपुर, जनपद बिजनौर, उत्तर प्रदेश 


द्वारा 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

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