Friday, March 1, 2019

राजपुरुषों के लिए - 6

برباد  گلستان کرنے کو جب ایک ہی الو  کافی تھا
انجام گلستان کیا ہوگا ہر شاخ پی الو بیٹھا ہے

बर्बाद ए गुलिस्तां करने को जब एक ही उल्लू काफी था।
अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा हर शाख़ पे उल्लू बैठा है।

अब पाकिस्तान से हम चाहते हैं कि दहशत गर्दी को मिटा दें परन्तु जब तक दहशतगर्दी के नुमाइंदे और दहतगर्दों को शरण देने वाले भारत में बैठे हैं हम सिर्फ दूसरे देश को कहते अच्छे नहीं लगते।  इसलिए दहशतगर्दी के मुख्य इलाक़े कश्मीर और भारत में फैले इन उल्लुओं को वश में करने के जो क़दम सरकार आज उठा रही है वो क़ाबिल ए तारीफ़ है। 

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा मनुस्मृति से छांटे गए कुछ नियम जो सरकार और सेना व सैनिकों के काम आ सकते हैं मैं लिख रहा हूँ।  हालांकि यदि आप को उपलब्ध हो पाए तो स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश के छठे समुल्लास का मुताल्ला फरमाएं जो कि राज धर्म विषय पर आधारित है -

१- कदापि किसी के साथ छल से न वर्तें किन्तु निष्कपट होकर सब से वर्त्ताव रखें और नित्य प्रति अपनी रक्षा करके शत्रु के किये हुए छल को जान के निवृत्त (समाप्त) करें। 

२- कोई शत्रु अपने छिद्र अर्थात निर्बलता को न जान सके और शत्रु के छिद्रों को जानता रहे जैसे कछुआ अपने अंगों को गुप्त रखता है वैसे शत्रु के प्रवेश करने के छिद्र को गुप्त रखे अर्थात जग जाहिर न करे ताकि कहीं शत्रु अलर्ट न हो जाये। 

३- जिस व्यक्ति की कार्य करने की नीतियों का भेद पहले ही फूट जाता है उसका कार्य कभी भी पूर्ण होना संभव नहीं।  अर्थात कार्य करने की विधियों व अन्य सूचनाओं को अति गुप्त रखना चाहिए ताकि अपने उद्देश्य में पूर्ण हो सकें।  कार्य पूर्ण हो जाने के बाद उन नियमों व सूचनाओं को जग ज़ाहिर करना ठीक नीति है। 

४- जैसे बगुला ध्यानावस्थित होकर मच्छी पकड़ने को ताकता है वैसे अर्थ संग्रह का विचार किया करे, द्रव्यादि पदार्थ और बल वृद्धि कर शत्रु को जीतने के लिए सिंह के सामान पराक्रम करे।  चीता के समान छिप कर शत्रुओं को पकडे और समीप आये बलवान शत्रुओं से खरगोश के समान दूर भाग जाये और पश्चात उनको छल से पकडे। 

 ५-इस प्रकार विजय करने वाले सभापति के राज्य में जो परिपन्थी अर्थात डाकू लुटेरे हों उनको (साम) मिला लेना (दाम) कुछ देकर (भेद) फोड़ तोड़ करके वश में करे।  और जो वश में न हों तो अतिकठिन दंड से वश में करे। 


आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

No comments:

Post a Comment