Friday, December 22, 2017

चल पड़े पहर जिस ओर पथिक

पा, सा  नी सा , सा  नी सा , सा  नी सा,  नी,  धा पा नी, नी धा  नी, नी धा नी, नी धा नी, धा, पा मा गा, धा  पा धा धा पा धा, धा पा धा, पा, मां गा, मा, पा सा नी सा 

चल पड़े पहर जिस ओर पथिक उस पथ पर फिर डरना कैसा। 
यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर..... 

हो कर चलने को उद्यत तुम न तोड़ सके बंधन घर के। 
सपने सुखमय भव के राही न छोड़ सके अपने उर के। 
जब शोलों पर ही चलना है पग फूंक फूंक रखना कैसा। 
ये रुक रुक कर बढ़ना कैसा। ये रुक रुक कर बढ़ना कैसा।
चल पड़े पहर जिस ओर पथिक उस पथ पर फिर डरना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर..... 


पहले ही तुम पहचान चुके ये पथ तो काँटों वाला है। 
पग पग पर पड़ी शिलायें हैं कंकड़मय काँटों वाला है। 
दुर्गम पथ अँधियारा छाया फिर मखमल का सपना कैसा।
यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर पथिक उस पथ पर फिर डरना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर..... 

होता है प्रेम फ़क़ीरी से इस पथ पर चलने वालों को। 
पथ पर बिछ जाना पड़ता है इस पथ पर बढ़ने वालों को। 
यह राह भिखारी बनने की सुख वैभव का सपना कैसा। 
यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर पथिक उस पथ पर फिर डरना कैसा।  
चल पड़े पहर जिस ओर..... 

इस पथ पर बढ़ने वालों को बढ़ना ही  है जीवन आता। 
आती जो पग में बाधाएं  उन से बस लड़ना ही आता। 
तुम भी जब चलते उस पथ पर फिर रुकना और झुकना कैसा। 
यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर पथिक उस पथ पर फिर डरना कैसा। 
चल पड़े पहर जिस ओर..... चल पड़े पहर जिस ओर.....चल पड़े पहर जिस ओर.....

(महर्षि दयानन्द गुरुकुल, चोटीपुरा की ब्रह्मचारिणियों द्वारा गए भजनों से साभार )

आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 


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