Tuesday, November 21, 2017

सुखी कोई परिवार नहीं।

परमपिता से प्यार नहीं और शुद्ध रहे व्यवहार नहीं।
इसीलिए तो आज देखलो सुखी कोई परिवार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।

अन्न, फूल, फल, मेवाओं को समय समय पर देता।
लेकिन है आश्चर्य यहीं कि बदले में कुछ नहीं लेता।
करता है इंकार नहीं, भेदभाव तक़रार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।


मानव चोले में न जाने कितने यन्त्र लगाये हैं।
क़ीमत कोई माप सका न, ऐसे अमूल्य बनाये हैं।
कोई अंग बेकार नहीं, पा सकता कोई पार नहीं।
ऐसे कारीगर का बन्दे करता ज़रा विचार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।


जल, वायु और अग्नि का वो लेता नहीं किराया है।
सर्दी, गर्मी, ऋतु बसन्त का सुन्दर चक्र चलाया है।
लगा कहीं दरबार नहीं, कोई सिपा सालार नहीं।
कर्मों का फल देता बराबर रिश्वत की सरकार नहीं।
परमपिता से प्यार नहीं -------------------।।


सूर्य, चाँद, तारों का न जाने, कहाँ बिजलीघर बना हुआ।
पल भर को धोखा नहीं देते कहाँ पे तार जुड़ा हुआ।
खम्भा है न कोई तार नहीं, खड़ी कोई दीवार नहीं।
ऐसे शिल्प कार  का रे तू बन्दे, करता ज़रा विचार नहीं।

(भजन ९९, भक्ति गीतांजलि, आचार्य बालकृष्ण जी, दिव्य प्रकाशन )


प्रस्तुत कर्ता
अनुभव शर्मा

(भजन ९९, भक्ति गीतांजलि, आचार्य बालकृष्ण जी, दिव्य प्रकाशन )

No comments:

Post a Comment