Friday, February 16, 2018

यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां

ॐ अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजं होतारं रत्नधातमं। 


दीपक पर जलने का मज़ा ये दीपक के परवाने से पूछ।
और क्या मज़ा ईश्वर भक्ति में है ये ईश्वर के दीवाने से पूछ।
कौन कहता है कि मुलाक़ात नहीं होती है।
रोज़ मिलते हैं मगर कभी बात नहीं होती।

बंदा होके न बंदियां कमा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।
खोटे  कर्मों के पास न जा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।

हीरा सा जन्म तुझे जिस ने भी दिया है एक भी छदाम नहीं बदले में लिया है
कधी उसका भी शुकर  मना यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।

धरती पे फूल भी खिलाये तेरे वास्ते मधुर मधुर फल लगाए तेरे वास्ते।
बीरा मुर्गी न मार मार खा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।

नीला नीला नीर भी बहाया तेरे वास्ते नभ को सितारों से सजाया तेरे वास्ते।
गन्दी नालियों में मत ना नहा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।


तान सुरीली तेरे कंठ में लगाई है कोयल सी आवाज़ तूने बेमोल पायी है।
गंदे गीत न बीर कभी गा यूँ ही व्यर्थ न उमर गवां।


(आर्यसमाज के भजनों से)

प्रस्तुति
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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