Monday, February 19, 2018

कैसे मनाऊं

मैं कैसे मनाऊं मेरे रूठे सँवरिया।

युवापन की मैली चदरिया विषयन दाग पड़ाई।
बिन धोये पिया रीझत नाहीं सेज से देत गिरायी।
सुमरन ध्यान का साबुन कर ले सत्य बात दरसाई।
पांच रुपये में घेर लई पाँच तत्व से भरी चुनरिया।

ये चुनरिया मेरे मायके\से आयी साथ दहेज़ में तीन गठरी भी लायी।
इस पर भी पिया खुश न हुए खोल दई सारी गठरिया।

सारा जग मैंने ढूंढ लिया।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों से पूछ लिया हार गयी और थक भी गयी।
तब मैं गुरु की शरण गई शरणागत ने मुझे बताया।
तेरे सँवरिया यहीं छिपे हैं, खोल ले अपनी दाग़ चुनरिया।

मेरी चुनरिया है नश्वर मृत्यु का ढेर है बिना ईश्वर।
इड़ा पिङ्गला सुषुम्ना श्रुति व निरुक्ति से जान लिया।
ॐ सोऽहं सब झंकार रहे अनहत बाजे बाज रहे।
अब तुम्हीं बताओ कहाँ छिपे हो मेरे सँवरिया।



श्री जगराम सिंह ग्राम इस्माईलपुर, सेवा निवृत्त कर्मचारी (UPSRT निगम )
फ़ोन - 9457095285 


द्वारा
-ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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