Tuesday, February 26, 2019

राजपुरुषों के लिए - 4

ॐ जब सभेश राजा इन्द्र अर्थात विद्युत् की तरह शीघ्र ऐश्वर्य का कर्ता, वायु के समान सब के प्राणवत प्रिय  और ह्रदय की बात जानने वाला, यम पक्षपातरहित न्यायधीश के समान वर्त्तनेवाला , सूर्य के समान न्याय, धर्म, विद्या का प्रकाशक अन्धकार अर्थात अविद्या अन्याय का निरोधक, अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करनेवाला, वरुण अर्थात बांधनेवाले के सदृश दुष्टों को अनेक प्रकार से बांधने वाला, चंद्र के समान श्रेष्ठ पुरुषों को आनंद दाता , धनाध्यक्ष के समान कोशों का पूर्ण करने वाला सभापति (प्रधान मंत्री) होवे। 

जो सूर्य के समान प्रतापी सब के बाहर और भीतर मनों को अपने तेज से तपानेवाला, जिसको पृथ्वी में करड़ी दृष्टि से देखने को कोई भी समर्थ न होवे।  

और जो अपने प्रभाव से अग्नि, वायु, सूर्य, सोम, धर्म प्रकाशक (धर्म मानव की इन्द्रियों में समाहित है जैसे सुदृष्टि धर्म, कुदृष्टि अधर्म, सुकर्म धर्म, कुकर्म अधर्म, अच्छा बोलना धर्म, बुरा बोलना अधर्म, सच बोलना धर्म, झूठ बोलना अधर्म आदि आदि ) धनवर्धक, दुष्टों का बन्धनकर्ता, बड़े ऐश्वर्यवाला होवे, वही सभाध्यक्ष सभेश होने के योग्य होवे। 

जो दंड है वही पुरुष राजा, वही न्याय का प्रचार कर्ता और सब का शासन कर्ता, वहीँ चार वर्ण और आश्रमों के धर्म का प्रतिभू अर्थात जामिन है। 

वहीँ प्रजा का शासनकर्ता, सब प्रजा का रक्षक, सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता है इसीलिये बुद्धिमान लोग दंड को ही धर्म समझते हैं। 
 ॐ 

ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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