Sunday, February 24, 2019

राजपुरुषों व सैनिकों के लिए -३

हमारे वीर सैनिकों के लिए यह कलेक्शन है।


गीता।२।२३
१. नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।१

ऋग्वेद से -
२. शं  नः कुरु प्रजाभ्य: अभयं नः पशुभ्यः।२

अथर्ववेद ।१९।१५।५
३. ओ३म् अभयंन: करत्यन्तरिक्षमभयं द्यावा पृथिवी उभे इमे। अभयं पश्चादभयं पुरस्तादुत्तरादधरादभयं नो अस्तु।३

अथर्ववेद ।१९।१५।६।
४. ओ३म् अभयं मित्राद भयम् मित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षात्।
अभयं नक्तमभयं दिवा न: सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु।४

५. न मे भक्तः प्रणश्यति। महावाक्य, गीता।

६. सन्देहात्मा विनश्यति।महावाक्य, गीता। 




अर्थ : 

1. न अग्नि इसे जला सकती न शस्त्र इसे बेध सकते वह अजर अमर आत्मा हैं हम। सो कर्तव्य में डंट जा। परमात्मा सदा अदृश्य रूप में हमारे साथ है। और वह नहीं है ऐसा नहीं है, वह है। यह वेद के द्वारा परमात्मा खुद कहते हैं।

2. हे प्रभु मुझे शत्रु से पूर्ण निर्भय कर।

3. मेरे प्रभु अंतर्यामी सब विधि अभय प्रदान करें।
अंतरिक्ष द्यावा पृथ्वी सब दिशा भय का नाश करें।

4. मित्र अमित्र जाने अनजाने, दिन रात अभय बनावें।
सभी दिशाएं मित्र बनें जीवन में निर्भयता लावें।

५. मेरा भक्त कभी दुर्गति या विनाश को प्राप्त नहीं होता।

६. जो लोग परमात्मा, सदगुरु , विद्वान्, ऋषि मुनि, वैज्ञानिकों व अपने माता पिता के वचनों पर संदेह करते हैं वो शीघ्र ही विनाश को प्राप्त हो जाते हैं।



ब्रह्मचारी अनुभव आर्य

No comments:

Post a Comment